Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 43
________________ [36] जैन लिंग निर्णय // हवा कि मुहपत्ती किम जगह थी दूसरा और भी सुनो कि जिस हाथ की उंगली यवंता कुमार ने पकडी उस हाथ की उंगली में मुहपत्ती रखे तो क्या हरज है क्योकि जिस हाथ में मुहपती थी उस हाथ की उंगली यवंता कुमार पकडे रह्या और झोली वाले हाथ से मुख को आच्छादन करके उम को खड़ाहो जवाब दीना होगा इस लिये तुम्हारी तरफ न बनी तीसरा और भी हम तम को दिखाते हैं भगवती सूत्र शतक 2 उद्देशा५ बताते हैं तुम्हारी खोटी तरक को उडातेहैं श्री गोतमस्वामी के आचार को दिखाते हैं पाठः-तएणसेभगवंगोयमे छठखमणपारणंगास पढमाए पोरसीए सझायंकरेइ वीयाए पारसीए झाण झीयाएं ीयाए पोरसाए अतुरीय मचवलमसंभंते मोहपोतियं पडिलहि 2 त्ता भायणायं बथ्थाइ पडिलेहइत्ताभाइणायं पमज्जइ 2 त्ता भाषणाय ओग्गाहेइ२ ना जेणवसमणे भगवमहावीरे तेणेव अोवागछइ 2 तासमणंभगवमहावीर वंदइ नमसइ एवंवयासी अर्थ:-तिसके बाद भगवान श्री गोतमस्वामी बोले अर्थात दो उपास के पारने के दिन पहिली पोरसी में सझाय करते हुवे ओर दूसरी पोरसी में ध्यान कीया और तीसरी पोरसी में उतावल अत् चपल पणा रहेत समता करके सहेत मुख वस्त्र कापड लेह करके भाजन अर्थात् पात्रा प्रमुख और वस्त्र पडलेह अर्थात् प्रमार्जन करके जिस जगह श्रवण भगवान श्री माहावीर स्वामी थे जिस जगह जाय करके श्रवण भगवान श्री माहावीर स्वामी को बंदा नमस्कार करके ऐसा कहते हुवे इस पाठसे मुहपनी पूंजनी अर्थत पडीलहण करनी तो कही परंतु खोलनी बांदनी न कही और आठ पड़ बनाकर डोरा बीचमें घाल कर बांधना न कह्या फेर न मालम सत्र के बिना आठत करना और मंडे पै बांधना ऐम चलाया हमकुं इस बातपे आश्चर्य आया हमने तुम्हारा कुछ म बन पाया तुमने जाने क्या नफा उठाया नाहक क्यों जिन

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