Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 25
________________ [18] जैन लिंग निर्णय // कर बांधना ठीक होतो दसरा और भीसुनोकि चदर इस शब्द के कहने से चांद पर ( सिर ) पे रखना चाहिये भीलो की तरह गाती. न मारना चाहिये क्यों कि चद्दर ऐसा शब्द कहा गाती मारनी नहीं कहा तीसरा और भी सुनो कि पात्रा इस शब्द के कहने से पांव ( पग) में रखना चाहिये आहार क्यों लाते हो क्योंकि आहार आत्रा तो कहा नहीं इत्यादि तुम्हारे शब्दार्थ के मूजब तो कुल शब्दार्थ बिपरीत हो जायगा इसलिये यथार्थ शब्दार्थ मानो मूर्खता की बातको मत तानो छोडदो अभिमानो जिन आगम के रहस्य को पहिचानो यह उपदेश हमारा मानो जिससे होय तुम्हारो कल्यानो जिससे मिले तुमको उत्तम ठिकानो इस जगह फिर मुख बांधने वाले सूत्र के प्रमाण बिदन मनोकाल्पत प्रश्न करते हैं सो यह प्रश्न है कि नागसरि ब्राह्मणी के यहां कोई साधुजी गोचरी लेनेकुं गये उस वक्त इस ब्राह्मणी ने कडुवे तूंबे का आहार बहराय दिया उस कारणसे अनंत भव भुगतके एक साहुकारके यहां जन्म लिया कुछ बरससे उसका विवाह हुआ तो उस के अगले जन्म का बैर होनेसे अनबनत रहतीथी सो कुछ दिन से कोई साधू मुनिराज गोचरी लेने आए उस वक्त में उसने अर्ज की कि महाराज साहिब मेरे पति के और मेरेमें अनबनत रहती है सो आप मुझे कोई इलाज याने जंत्र मंत्र तंत्र बताओ उस वक्त में मुनिराज ने दोनों कानों में उंगली लगाकर कहने लगे कि हमतो इस बातको कानसे भी नहीं सुनते इस अनुमान से सिद्ध हुआ कि मुंहपत्ती मुंह बंधी हुई थी (उत्तर) भोदेवानु प्रिय! यह तुम्हारा प्रश्न विवेक शून्य बुद्धि विचक्षणता मतपक्ष हटग्राहीपने का है क्योंकि जिन शास्त्रों को तुम मानते हो उस में तो यह जिकरही नहीं और जो जिकर होता तो तुमको पाठ बोलना था खैर अब हम तुमको समझाते हैं कि जो साधु उसके मकान में गयाथा उसको जातेही पूछा था अथवा आहारादि | बहरायकर पूछाथा जो तुम कहो कि जातेही पूछाथा तो साधु

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