Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 29
________________ - [22] जैन लिंग निर्णय // कि एक काम को करके पीछे दूसरे काम को करेगा ऐसेही इसजगह भी समझ पश्तर हाथ जोड़ कर मस्तक अंजली करके पीछे हाथ से मुख अबादन करके नमत्थुगणं कहा इसी बात को नेत्र मींच कर बुद्धि से विचार कुगुरु का संग निवार सत गुरु कुं धार जिन आज्ञा को समार जिस से होवे तेरा निस्तार इस गतिम साध का मुख बंधा हुवा नहीं क्योंकि प्रदेशी राजा चित्त स्वार्थी की मंगमें बगीचामें गया और उस बगीचेके बीचमें श्री कैशी कुमार आचार्य को देसना देता हुआ देखा और देखकर जो विकल्प उसके चितमें उठे सो विकल्प चित स्वार्थी से कहे उसी पाठ को श्रीराय पसणी सत्र से दिखात हैं तुम्हारे मुख बांधने को उड़ाते हैं सूत्र की साक्षी बताते हैं मानो तो खुशी तुम्हारी हमतो जिन आज्ञा को जताते हैं ( पाठ) ___ तणणसेपदेसीराया रहातोपचारुहइ चित्तणसारहिणासी खं आसाणसमंकिलाम पीण माणेपासइजथ्थ केसीकुमारेसम महितिमहालियाएमा सपरिसाएमझगएमहिया 2 सदेणं धम्नमाइख पाणपसित्ता इमेयारुवे अझथियएसकप्पेसमुपज्ज थ्थाजडाखलु भोजडंपजुपजुवासंति मुंडाखलु भोमुडंपजुवासंति मुढाखलु भोमुहं यजुवासंति अपंडियाखलु भो अपंडियापजु वासंति निविणाणाखलु भोनिविणाणं पजुवासंतिसकेसणंएस पुरीसे जडेमुंडे मुढे अपडिएनिव्वणाणे मीरी एहिरिएओवगएओ त्तप्पसिरिए एसणंपुरीसेकिमाहारतिकिखायइ किंपयइकिपय थ्थतिजणंएसपुरिस महातिम हालीयाएमणुस्सपरिसाएमझ गते महियाए 2 सदेणवुयाई एवंसपेहिइ 2 ना चितसारहिं एवं वयासी चित्ता जडाखलु भोजड पजूवा संतिजाववुयाइ / अर्थ-तिसपीछे ते प्रदेसी राजा रथसे उतरकर के चित्त स्वार्थी के साथ घोडों को किलामना अर्थात् टहलाते हुए | फिरते 2 देखते 2 जहां श्री केशीकुमार समोसरण अर्थात् मोटी

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