Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 35
________________ [28] जैन लिंग निर्णय // भोले भाईयो ! कुछ बुद्धि का बिचार करो और वायकायके मध्य देखना होय तो इसी दसबैकालक के चौथे अध्येन में देखो मिति को मत पेखो जिन आज्ञा का करो लेखो और भी हम तुमको दिखाते हैं कि जो तुम लोग कहतेहो कि उघाडे मुख बोज नेमें वायुकाय की हिंसा होती है जिनमें तीन पाठ तो हम तुम्हारे को दिखाय चुके कि खुले मुख बोलने में वायकाय की हिंसा नहीं फिरभी चौथ पाठ में दिखाते हैं श्रीनसीत सत्र अध्येन१७ उद्देशा प्रश्न 255 में दिखाते हैं:- जे भिक्षु अच्चुसिणं असणंवा मुखेणा घिहुणेणवा तालियंटेणवा पत्तेणवा पतभंगणवा सहाएणवा सहाभंगणवा इतादिमाहटु दिजमाणं पडिग्गाहोइपडिग्गाहंनंवा साइजइ॥ अर्थ- जो कोई साधू साध्वी अति उष्ण अर्थात गरम ( करके अशनादिक चार प्रकार का आहार अथवा पानी मुख ताता) फंक देवे अथवा पंखा करके अथवा कपडा करके अथवा पत्ता करके अथवा पत्ताके टुकडा करके अथवा शाखा करके अथवा शाखा का एक देश सेती शीतल करे अथवा मुख की फूंक देकर शीतल करे और शीतल करके अशनादिक लेवे अथवा लेनेवाले को मनमादे अर्थात् अच्छा जाने तो लन्धु चौमासी प्रायश्चित आवे इसी रीति से आचारांगजी मध्ये जो कोई वायुकाय की हिंसा निमित्त पंखा आदिक से अथवा मुख से फंक लगाय करके साधु को अशनादिक दे कदाचित माधुले तो साधू को सावीद लगे जो साधको सावीद लगे तो मुनि को प्रायश्चित आवे ऐसा नसीथ सत्र में कहा है इस बात को बिचारो कु गुरू का संग निवारो समगत सेली धारो जिससे होवे कल्याण तुम्हारो मोपत्ती बांधने की खेंच को हिदे से डारो क्योंकि देखो जो तुम मोपत्ती अष्ट पहर मुख पर बांधतेहो तो उसमें रखनेसे थक से आली मोपत्ती हरदम रहती है उम आलेपनों में छमोईम पंचेन्द्री मनष्य पैदा - - -

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