Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 27
________________ [20] जैन लिंग निर्णय // का अवकाश न मिले तो कानों में उंगली देले जिससे वो शब्द नसने क्योंकि यह अनभव सब को बैठा हवा है कि कानों में उंगली देने से शब्द नहीं सुनाई देता है तो फिर साधुजीने दोनों कानों में उंगली डाल लीनीतो फिर उस स्त्री का पति को बसी कराने में मंत्र जंत्र तंत्र की विधि पूछने से क्योंकर सुनी क्योंकि वह शब्द भी उस स्त्री ने जोर से तो कहा ही नहीं होगा क्योंकि ऐसी बातें तो धीरज से कही जाती है तो जोर की बात कानों में उंगली देने से नहीं सुनाई देती है तो धीरज की बात क्यों कर सुनाई देगी इसलिये यह तुम्हारा प्रश्न करना बुद्धि बिकल जिन लिंग बिरुद्ध आचरण कदापि शुद्ध न होगा खेर जो तुम्हारा ऐसाही आग्रह है तो भी फिर तुम को बताते हैं कि जिसवक्त उस स्त्री ने पती वसी करण का शब्द उच्चारण किया और साधू ने कानों में उंगली लगाई जब वो कहकर चुप हो चुकी जब साधु ने कानों से हाथ हठाय कर मुख को मुंहपत्नी से (आच्छादन ) कर के कहने लगा कि हम इन बातों को कान से भी नहीं सुनते तो बताने का जिकर ही क्याहै क्योंकि देखो जो शख्स कोई किसी से कोई बात पछता हैं तो जब वो शख्स संपर्ण कह चुकेगा तब दूसरा बुद्धिमान उसका उत्तर देगा और जो पूरी बात सुनेहीगा नहीं और बीच से उत्तर देगा उसे लोग मुर्ख कहेंगे इसलिये शास्त्र में कहाहै कि ( एक समय नत्थी दोउपयोग ) इसलिये हे भव्य! मुख बांधना सिद्ध न हुवा और तेरी शंका के माफिक एक शंका तेरी तरफ से उठाय के दिखाते हैं सूत्र का प्रमाण भी बता ते हैं तेरे अज्ञान को दिखाते हैं पहिले उसको लिख कर पीछे तेरे को यथावत समझातेहैं भगवतीजी सतक 2 उ० 2 में देखो तुम्हारी जैसे बुद्धि बिकल इस जगह भी इस सूत्र में शंका करते हैं पा सूत्र यह है ( गाथा) तहारुहेही कडाइहि थेरेहिं संद्धिं विपलं पव्वयंसणियं 2

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