Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 26
________________ - कुमतोच्छेदन भास्कर // [16] कान में उंगली देकर इस बात को क्यों सुनता रहा क्योंकि जहाँ स्वार्थ अर्थात् संसारी वात कोई कहे तो साधु खडा न रहे इसलिये कान में उंगली देना नहीं बनता क्योंकि साधुके जातेही गृहस्थी सपने मतलब की बात करे तो साधु न ठहरे इसलिये यह तुम्हारा कहना असंभव है जो तुम कहो कि आहार बहराने के बाद कहाथा तो यह भी बात संभव नहीं होती है क्योंकि आहार लेने के बाद साधु गृहस्थी के घरमें ठेरेही नहीं कदाचित तीसरे तम ऐसा कहो कि वह आहार वहराती जातीधी और कहनी जातीथी तो यह भी वात संभव नहीं होती क्योंकि जब साधु आहार पात्रामें लेरहा था और झोली पात्राको संभालताथा के कान में उंगली लगाताथा कदाचित ऐसा कहो कि पात्रा जमीन पै रखाथा तो यह बात भी असंभव है क्योंकि अव्वल ता साधु गहस्थ के घरमें झोली खोलकर पात्रा जुदा 2 फैलावे नहीं कदाचित तुम अपनी बहरने की रीतिको अंगीकार करो तोभी असं. भव हो जायगा क्योंकि उस बहराने वाले पात्रासे उपयोग रखोगे तो अन्य पात्रा में मक्खी आदिक आयकर बैठेगी अथवा बिल्ली आदिक आकर खाने लगेगी तो उनको उडाने से या हटानसे अंतराय कर्म होगा और उधर भी बहाने के पात्रा में उपयोग न रहेगा तब गृहस्थी भी वैसी बहराय देगा तो फिर साधु के अन खपत होने से परठनापडेगा सो इस रीति से लाय कर परठने की भगवत आज्ञा है नहीं इसीलिये हे भव्य ! भगवत ने चौदे उपगरणो में सात उपगरण पात्र के गिनाये हैं उस रीति से जो गोचरी करने वाले साधु हैं उनको न तो मक्खी आदिक उड़ाने की अन्तराय कर्म बन्धे और न गृहस्थ के घरमें दुकान अर्थात् जुदे 2 पात्रा फेलाने पड़े इसलिये यह शंका तुम्हारी न बनी दुमरा औरभी सुनों कि लौकिक में भी ऐमा कहते हैं कि जिस जगह अपने आचरण से विरुद्ध आचरण की बात हो तो उस जगह वो मनुष्य न ठहरे किन्तु चला जाय कदाचित जाने

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