Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 24
________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // [7] लगाते को रंगते को मसलते को अनुमोदे अर्थात् अच्छा जाने जो अगर मुख बांध्या हुआ होता तो दांत घिसे तथा धोवे तथा रंगे वो कैसे दीखता तथा स्त्री आदिक देखके कैसे राजी होती है इस प्रमाण से यह निश्चय हुया कि मुनी के मुखको मोहपत्ती बंधी हुई न थी यह स्पष्ट मालम पडता है बद्धिवंत होगा सो बिचार करेगा मतपक्षी तो मतपक्ष में खुशी हैं उसको जोग्य अजोग्य बस्तु नहीं दीखती है उसका कुछ दोष नहीं उसको मतपक्ष रूपी भंग चढी हुई है बिचार क्या करें परवश हो रहा है मिथ्यात रूपी नशे में सोरहा है कुगरुओं के बहकाने से मगन हो रहा है चिंतामणि रत्नको हाथ से खो रहा है इस बात को सुनकर मुंह बांधने वाले कहते हैं कि आपने सूत्रों की साक्षी दी सो तो ठीक है परंतु कुच्छ बुद्धि का विचार करो कि श्री वीतराग सर्वज्ञ देव ने इसका नाम मुखपत्ती कहा तो बांधना अवश्यही सिद्ध हो गया क्यों कि मुखपत्ती तो फिर खुला मुख क्यों कर रहेगा इसलिये मुख पर महपत्ती बांधनाही चाहिये (उत्तर) भो देवानु प्रिय ! इस तेरे प्रश्न से हमको मालुम हुआ कि तेरेको न्याय व्याकरण की धातु प्रत्यय अव्यय लिंग बचन आदिका किंचित भी बोध नहीं क्यों कि तेरे कहनेसेही स्पष्ट मालुम होता है क्यों कि जो तेरे को शब्द का बोध यथावत होता तो सूत्र का भी अर्थ यथावत मालुम हो जाता तो फिर इस विपरीत लिंग कुं क्यों धारण कर ता खैर अब तेरेको जो तेरा मन कल्पित मुखपत्ती से मुंह बांधना सिद्ध करता है तो हम तेरेको तेरी बद्धि कल्पित अर्थ को पछते हैं सो तेरे मनोकल्पित माफक उस अर्थ को भी अंगीकार कर सो हमारा पूछना ऐसा है कि जैसे तू मुखपत्ती कहने से मुख बांधना सिद्ध करता है तैसेही चोलपट्टा इसकाभी अर्थ चले पे रखना अथवा चोली से बांधना ऐसा अर्थ होगा लूंगा के ऊपर लगाई की तरह घाघरा सरीखा पटली मार कर पहरना न बनेगा कों कि ढुंगा पहा कहते जबतो तुम्हारा घाघरा के बतौर पटली मार

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