________________ [8] जैन लिंग निर्णय // पीछे 2 चले तब मृगादेवी राणी जहां / भूमि घरथा वहां आती हुई और च उपडेणं कहता चारपूर्त करके ( चारतह ) मुःख को बंध मानी कहता बांधती हुई और भगवंत श्री गौतम स्वामी से कहती हुई कि हे भदंत अर्थात् हे पूज्य तुमे विणकहता आपभी मोहपत्ती याऐ कहतां मुंहपर्ता से मुंह बंधेक आप मुख को बांधो तत्तेणंक तिसरी ते भगवत गोनम स्वामी प्रीया देविक० मृगादेवी के कहने मे मोहपत्तीयाऐ कहता मुःख वस्त्र कासे मुंहबंधई 2 चाःक. मुख को बांधते हुवे ॥इस बिपाक सूत्र के पाठ सेतो श्रीगौतम स्वामी के मुखसे मुखपत्ती बंधीहुई नहींथी किन्तु हाथमें थी क्यों कि जो मुःखसे बांधी हुई होती तो मगादेवी रानी का कहना ऐसा कदापि न बनता कि है भगवंत आप मुंपत्ती से मुःखको बांधोक्यों कि चोदह उपगरणों में तो मःख पत्ती एकही गिनाई है तो फिर दूसरी मुंहपत्ती कहांसे आई जिसके वास्ते मगा देवीने कहा दूसरा और भी सुनो कि मगादेवी के कहने बाद जो गोतम स्वामी के मुंहपत्ती बंधी हुईथी तो गोतम स्वामी ने दूसरी कौनसी मुंहपत्ती से मुःख बांधा क्योंकि ऐसा पाठहै कि मृगादेवी के कहने के बाद मुंहपत्ती यो मोहबंधई 2 त्ता कहनेसे पीछे मुंहपत्ती से मुःख बांधा इस रीतिसे तो श्रीगोलम स्वामी के हाथ में मुःखपत्तीथी न तू मुःखके ऊपर बंधी हुईथी अब इस जगह मुंहपत्ती बंधने वाले एसा कहते है कि श्री गोतमस्वामी के मुंहपत्ती तोमुःख से बांधी हुईथी परन्तु मृगादेवीने नाक को बांधना कहा था क्योंकि दुर्गधनासिका को आती है मुःख को | नहीं इस हेतु से मगा देवी का कहना और गोतम स्वामी का बांधना हुवा इसलिये मुखपत्ती मुंह पर वांधनाही ठीक है जो ऐसा कहने वाले हैं उनको उत्तर देना चाहिये कि भोदेवानु प्रिय इस तुम्हारे कहने से तो श्री गोतम स्वामी गणधर सूत्र बनाने में भूल गये क्योंकि मगादेवीने नासिका बांधने को कहा और उन्हों ने मुंहपत्ती से मुःख बांधना लिख दिया तो सूत्र गलत ठहरे तोगण. धर आदिक के वाक्य को छोड़ कर तुम्हारे मनो कल्पित अर्थको