Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 12
________________ कमताच्छेदन भास्कर // [5] बेईमानी आई तब उसने एक पुस्तक के बीचमें सात 7 पृष्ठा लिखना छोड दिया जिस पुस्तक के लिखवाने वालेने पुस्तक अधूरी देखी उसने लोंका लहिया की बहुत बुरी फजीती करी उपासरे में से निकाल दिया और सर्व श्रावकों को कह दिया कि इम गेका पासने कोई कुछ भी पुस्तक लिखानी नहीं इस प्रमाण होने | मे लोंका की आजीविका बंध होगई बहुत दुःख पाया इस कारण से वो जैनमत का द्वेषी बनगया जब अहमदाबाद में लोका का जोर चला नहीं तब वहांगे आसरे (4.) चालीस कोस दूर (लीबडी) नाम करके एक गांवहै वहां उसका ( लखमसी) करके कोई परम मित्र था उसकी तरफसे कुछ आश्रय मिलजाय ऐसा विचार के लखमसी यहां के राजा का कारबारी है इसलिये वो विचारेगा तो सफल होजावेगा उममें कोई तरह का शक नहीं। पीछे लोंका लीबडी गया वहां जाकर लखमसी से कहा कि भगवान का मार्ग लोप होगया है लोग उलटे रस्ते चलते हैं मैंने अमदाबाद में बहुत लोगों को सांचा उपदेश कह्या परंतु मेरा कहना न माना उल्टा मुझे वहांसे मार पीटके निकाल दिया अब मैं तुम्हारी तरफसे सहारा मिलेगा तो ऐसा विचार करके तुम्हारे पास आयाहूं इसलिये जो तुम मेरे को सहारा दोतो मैं सच्चा दया धर्म की परूपणा करूं इस माफक हलाहल बोलके बिचारे मूढमति लखमसी को समझाया तब उसने उनकी बात सच्ची मानकर लोंका से कहा कि तुं खशी से इम राजके अंदर परूपणा कर मैं तेरे खाने पीने की खबर रखंगा इस रीतिसे सहाय मिलनेसे लोकाने संवत् (15.8) में जैनमार्ग की निंद्या करनी शुरू की आसरे (26) छब्बीस वर्स तक तो उसका मार्ग किसीने अंगीकार किया नहीं आखिर संवत् (1534) में एक अकल का अंधा महाजन उसको मिला उस भणाने महा मिथ्यातके उदयसे उसका मंठा उपदेश मानलिया और लोंकाके कहने से गुरू बिना कपडे पहन कर मुढ अज्ञानी जीवों को जैन मार्गसे भ्रष्ट करना शुरू किया लोंकाने एकत्तीस सूत्र सच्चे माने

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