Book Title: Jain Katha Kosh
Author(s): Chatramalla Muni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh prakashan

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Page 11
________________ कथा-कोष रखा तो सभी ने इसकी उपयोगिता बताते हुए इसके क्रम और श्रम को सराहा। प्रस्तुत जैन कथा कोष-जैन कथा सागर की एक बूंद या घट मात्र ही कहा जा सकता है। सम्पूर्ण जैन कथा सागर का आलोड़न व संदोहन तो वर्षों की लम्बी साधना व हजारों-हजार पृष्ठों की अपेक्षा रखता है। किन्तु इस दिशा में प्रयत्नशील व रुचिशील जिज्ञासुओं के लिए यह कथा-कोष एक वीथि का कार्य अवश्य करेगा। इसमें जहां तक प्राप्त हुए हैं, प्रत्येक कथानक का सन्दर्भ/प्रमाण देने का प्रयत्न किया गया है, ताकि जिज्ञासु उसके उद्गम-स्रोत से भी परिचय कर सकें। मुझे आशा और विश्वास है कि कथा-साहित्य के क्षेत्र में मेरा यह प्रयत्न मित्र दृष्टि से देखा जायेगा। इसके सम्पादन/सन्दर्भ लेखन आदि में मेरे भ्रातृव्य सेवाभावी मुनि नगराजजी ने जो श्रम किया है, वह उनकी कर्मठता व कथा-रुचि का ही सुफल है। आशा है, पाठकों के लिए यह उपयोगी सिद्ध होगा। ____ मैं परम आराध्य आचार्यप्रवर के आशीर्वाद तथा मुनि नगराजजी और मोहनलालजी 'सुजान' की निर्नाम सेव और शान्त सहवास से अस्वस्थता में भी स्वस्थता को अनुभव करता हुआ कुछ क्षणों का उपयोग कथा-कोष के निर्माण में कर सका, इसका मुझे बहुत-बहुत आत्मतोष है। -मुनि छत्रमल्ल जैन भवन, हांसी (हरियाणा)

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