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कथा कोश (प्रभाचन्द्र ) - रचना वि. सं. 1100 लगभग कथा कोश प्रकरण ( जिनेश्वर सूरि ) - रचना वि. सं. 1108 कथा कोश (जिनेश्वर सूरि ) - ) - रचना वि. सं. 1108 आख्यानक मणिकोश
( देवेन्द्र गणि / नेमिचन्द्र सूरि ) - रचना वि.
सं. 1129
कथा कोश (भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति- शुभशीलगणि).
सं. 1509
- रचना वि.
इसी श्रृंखला में धर्मदासगणिकृत - उपदेशमाला, जयसिंह सूरिकृतधर्मोपदेश माला, आचार्य हरिभद्र कृत- उपदेशपद ( स्वोपज्ञवृत्ति आदि), श्री लक्ष्मीविजय कृत उपदेश प्रासाद ( पांच भाग) गिने जा सकते हैं।
कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र कृत 'त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र' स्वयं एक महान् चरित्र - कोश है, जिसमें सैकड़ों जैन चरित्रों का सांगोपांग वर्णन है।
इसके अतिरिक्त मूल आगमों में- ज्ञाता सूत्र, अन्तगड सूत्र, निरयावलिया आदि तथा इनकी व उत्तराध्ययन आदि आगमों की टीका, चूर्णि एवं भाष्यों में भी हजारों-हजार लघु- वृहत्कथाएं अंकित हैं।
आवश्यक निर्युक्ति, चूर्णि और आवश्यक कथा को तो जैन कथाओं का आगार ही कहा जा सकता है। अस्तु ।
जैन कथा-साहित्य का अधिकतर भाग प्राकृत - संस्कृत - अपभ्रंश में है। इसके बाद गुजराती व राजस्थानी भाषा में भी विपुल जैन कथा - संग्रह एवं स्फुट चरित्र, रास, चौपी, आदि मिलते हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के चतुर्थाचार्य श्रीमज्जयाचार्य ने तो इस दिशा में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रयत्न किया- 'उपदेश कथारत्न कोष' के रूप में। यह महान् कृति अभी तक अप्रकाशित है, पर इसमें हजारों छोटी-बड़ी कथाओं का सुन्दर संकलन है। राजस्थानी जैन-साहित्य की यह एक अमूल्य निधि कही जा सकती है।
उपर्युक्त साहित्य के आलोक में देखें तो राष्ट्रभाषा हिन्दी में अब तक बहुत कम प्रयत्न हुआ है। जो कुछ कथा - साहित्य निकला है, वह अच्छा है, फिर भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। मैं भी इस दिशा में प्रयत्नशील था। जब श्रद्धेय महाप्रज्ञ जी महाराज एवं अन्य साथी संतों के सामने यह