Book Title: Jain Jagaran ke Agradut
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ प्रकाशकीय लेखकोको देते रहे है, वही उलाहना आगेकी पीढी हमे देनेको मजबूर होगी। ५. हमे खेद है कि इन महानुभावोके सम्बन्धमे अत्यन्त प्रयत्न करने पर भी कुछ नही दिया जा सका-डिप्टी चम्पतराय, पं० चुन्नीलाल, प० बालमुकन्द, जैनी जीयालाल, जनी ज्ञानचन्द, तीर्यभक्त लाल देवीसहाय, ला० शिब्बामल, ला० जगन्नाथ जौहरी, पं० मेवाराम रानीवाले, वा० ऋपभदास वकील, वा० प्यारेलाल वकील, प० वृजवासी लाल, जिनवाणीभक्त ला० मुराद्दीलाल, रायबहादुर पारसदास । ____. पुस्तकमे कई महानुभावो का परिचय कतई अधूरा है। हम 'उनका विस्तारसे परिचय देना चाहते थे। लेकिन उनके कुटुम्बियो, समकालीन सहयोगियो-मित्रोको अनेक पत्र लिखने पर भी सफलता नहीं मिली। यहाँ तक कि कई व्यक्तियो की तो जन्म-मरण की तिथियां भी विदित न हो सकी, और जो मिली भी वे बेतरतीब । कही, जन्मसमय तिथि-सवत्का उल्लेख है तो मृत्यु-समय तारीख सन् का । ____७ एक-दो को छोडकर प्राय सभी चित्र पुराने पत्र-पत्रिकाओंने लेकर नये सिरेसे उनका डिजाइन कराके व्लाक बनवाये है। यदि चित्र सुन्दर मिलते तो ब्लाक भी उतने ही आकर्षक होते । क चित्र तो 'मिल ही नहीं सके।

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