Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 26
________________ ४४४ जैनहितैषी - से पण्डितजी अनुमान करते हैं कि यशोधरचरित प्रभंजन मुनिके किसी शिष्यका बनाया हुआ है । परन्तु यह अनुमान ठीक नहीं। सा क्षात् शिष्य ही किसीको 'गुरु' कह सकता हो, ऐसा नहीं है । गुरुका अर्थ साधारण जैनमुनि भी हो सकता है। प्रभंजन मुनिका चरित राजा पूर्णभद्रके पूछने पर श्रीवर्धन मुनिने कहा है और इसके बीचमें उन्होंने अपने और अपने साथी अन्य सात मुनियोंके वैराग्यका कारण भी पृथक् पृथक् बतलाया है। सात मुनियोंकी दीक्षाका कारण बतलाकर चौथे सर्गके अन्तमें उन्होंने कहा है कि आठवें नन्दमुनिके तपका हेतु यशोधर महाराजका चरित है ( जो आगे कहा जायगा ) । इससे मालूम होता है कि प्रभं - जन, नन्दिवर्धन, नन्द और यशोधर महाराज आदि सब समकालीन हैं, और इस लिए यशोधरचरितके रचयिता के लिए जिस प्रकार यशोधरमहाराज एक बहुत पुराने समय पुराण- पुरुष हैं उसी प्रकार प्रभंजन मुनि भी हैं । वे उनके गुरु या दादागुरु आदि कोई नहीं हो सकते । पण्डितजी चाहते, तो उन्हें यह बात थोड़े ही परिश्रमसे मालूम हो सकती थी । प्रभंजनमुनिका चरित्र स्त्रीचरित्रसे—स्त्रियोंके छल कपटोंसे भरा हुआ है। प्रभंजन मुनि और उनके साथी दूसरे आठ मुनि सभी स्त्रियोंके पापकर्मोंको देखकर विरागी हैं । मालूम नहीं उस समय केवल स्त्रियोंका ही चरित्र इतना गिरा हुआ था, या पुरुषों में भी यही बात थी । कथायें यद्यपि बहुत ही छोटी छोटी हैं, तो भी वे शुकबहत्तरीकी कथा - ओंके समान खूब ही कुतूहलवर्धक और मनोरंजक हैं । उनके पढ़नेमें जी लगता है । हमारे कथाग्रन्थोंमें इस श्रेणीकी कथायें बहुत ही कम हैं। अच्छा होता, यदि पण्डितजी इसके साथ हुए Jain Education International मूलग्रन्थको भी प्रकाशित कर देते । अनुवादक भाषा अच्छी है और वह अन्य पण्डितोंकी रचनाके समान क्लिष्ट नहीं है । इसके लिए हम पण्डितजीका अभिनन्दन करते हैं । ६ रस - क्रिया । ' यंत्र निर्माणका प्रामाणिक सचित्र सम्पादक, वैद्यरत्न पं० शिववक्स शर्मा गुरु, फतहपुर (सीकर) और प्रकाशक, बाबू जमना - दास पोद्दार, लाल कटरा, दिल्ली । मूल्य चार । निबन्ध ।' धातुओंके मारने या रस बनाने में जिन यंत्रों का उपयोग होता है, उनका स्वरूप इस संस्कृत पद्यनिबन्धमें बतलाया गया है । सम्पादक महाशयने अपने पुस्तकालय अ प्राचीन ग्रन्थोंसे उद्धृत करके इसे लिखा है । इस विषय के ग्रन्थ बहुत ही दुर्लभ हैं । अच्छा होता यदि पण्डितजी इसका हिन्दी अनुवाद भी साथ ही साथ प्रकाशित कर देते । यंत्र जो चित्र पीछेके पृष्ठोंमें दिये गये हैं, वे बहुत ही भद्दे और अस्पष्ट हैं | यदि किसी चित्रकारको समझाकर उससे ये चित्र बनवाये जाते, तो पाठकोंको बहुत लाभ होता । वे यंत्रोंके स्वरूपको अच्छी तरह समझ लेते । प्राप्तिस्वीकार । नमक सुलेमानी - ' श्रीयुत भाई गोरेलाल पन्नालाल जैन, चन्दाबाड़ी गिरगाँव, बम्बई ' से हमें एक शीशी नमक सुलेमानी मिला है । हमने कुछ दिनोंतक इसका उपयोग किया । यथेष्ट स्वादिष्ट न होनेपर भी यह बहुत गुणकारी है । खाते ही अजीर्ण पच जाता है। दस्त साफ आता है। एक अच्छे अनुभवी वैद्यके बतलाये हुए नुसखे के अनुसार यह बनाया गया है । छह तोलेकी एक शीशीका मूल्य आठ आने है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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