Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 77
________________ बाल-विवाह। t itutiffiniti ४९५ if टेककर अपने कमरेमें बारबार प्रार्थना करता- दौड़े हुए उसके कमरेमें घुस गये । किन्तु, है-'हे ईश्वर ! तू मेरी जान जान भले ही केदारको मुसकराते हुए शिष्टाचार करते देख लेले, पर उसको बचा ।' डाक्टरोंने निश्चय उनका भय कुछ कम हुआ। वे बोले-"बेटा, कर लिया कि बिना आपरेशनके काम न लोगोंने तुम्हारी शोचनीय अवस्थाके विषयमें चलेगा, और यदि बहू इसी समय क्लोरोफा- जो कहा था, उससे तो मैं बहुत ही घबड़ा मसे बेहोश नहीं कर दी जायगी, तो बस गया था ।" उसने उत्तर दिया-“जी हाँ, अब उसके प्राण न बचेंगे। सिविल सर्जन पहले मुझे बड़ा दुःख था, पर अब कुछ साहब नश्तर आदि लेने कोठी गये और आये। मिनटोंसे मैं बिलकुल अच्छा हूँ।" वे बाहर बेचारी बालिका बहोश कर दी गई । बेहो- आये और उस समयके जरूरी कार्यकी शीके पहले चन्द्रमुखीने गद्गद् स्वरसे केदार. चिन्तामें लगे। सहसा केदारके कमरेसे पिनाथकी ओर देखकर कहा था- 'प्यारे ! स्तौलकी एक आवाज हुई! लोग दौड़कर दरमैं अब परलोकको जा रही हूँ।' बस उस वाजा तोडकर भीतर घुसे तो केदारको मरा समयसे केदार हदसे ज्यादा परेशान है और बैठा बैठा न जाने क्या सोच रहा है। ॥र हुआ पाया । टेबुल पर यह पत्र मिला-"प्याबेहोश होनेके आधे घण्टे बाद मरा हुआ रा चन्द्रमुख डा री चन्द्रमुखीकी मृत्युके हमीं लोग प्रधान लड़का पैदा हुआ और थोड़ी ही देर बाद कारण हैं, अतएव उसे अकेले ही प्राणदण्ड चन्द्रमुखीके प्राण पखेरू भी उड़ गये। न मिलना चाहिए । उसमें मेरे माता, पिता बाबू अमीचन्द भी आगये, पर पतोहको पितामहका भी दोष है । मेरी मृत्युसे उनको जीवित न देख पाये । उन्होंने यह भी भी दण्ड मिल जायगा-प्रकृतिका कठोर सुना कि केदार बेहद परेशान है । वे नियम मैं पूरा किये देता हूँ।" * युवकोंके प्रति । __ (ले०, देशभक्त।) अरे हमारे युवको ! तुमको, निद्राने क्यों घेरा है ? आलस त्याग करो कुछ उद्यम, देखो हुआ सबेरा है । देश दशा सुधरेगी तुमसे, सबको ऐसी आशा है। हो उत्थान पुनः भारतका, 'हाथ तुम्हारे पाशा है ' ॥१॥ समझ रहे हो क्या तुम ऐसा, 'हमसे क्या कुछ होना है ?' छोड़ इसे तुम लगो कार्यमें, तुमसे ही सब होना है ॥ मार्ग तुम्हारा देख रहे सब, किस पथपर तुम चलते हो। स्वार्थविवश ही रहते हो, या भारत हित भी मरते हो ॥२॥ * यह लेख 'देश-दर्शन' नामक ग्रन्थसे उद्धृत किया जाता है । 'देशदर्शन ' छप रहा है, हिन्दीग्रन्थरनाकर-सीरीजमें शीघ्र ही निकलेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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