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SARILALITALITAHATAIMILIAHITIHAARAMAIRAIMILAR तथाँके झगड़े मिटानेका आन्दोलन ।
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है या सच्चा है । इस प्रश्नका कोई सीधा सम्बन्ध ५ आपसमें फूट कौन कराता है ? भी तो नहीं है। इसी प्रकार यह कहनेका लालाजी कहते है कि “ नहीं मित्रो, (अपील साहस करना भी-कि जो प्रथम जन्म पाता करनेवाले ) असंभव एकताका लोभ दिखाकर है वह सच्चा और जो पीछे.जन्म पाता है वह दिगम्बरोंमें अनेकताका प्रयत्न कर रहे हैं-आपसमें झूठा-एक प्रकारसे अपनी मूर्खता प्रकट करना फूटका बीज बो रहे हैं।" इस विषयमें मैं अब ही है। इतना तो मैं कहूँगा कि इति- क्या कहूँ ? इसका उत्तर तो लालाजीको एक हासज्ञोंके उपयोगके लिए तारीखोंका पता अवश्य बच्चा भी दे देता कि पानीसे आग बुझती है, या लगाया जाना चाहिए और जगत्के तत्त्वज्ञानकी सुलगती है ? पर इतना तो मुझे अवश्य कहना वृद्धिके लिए जुदा जुदा धर्मशास्त्रोंके सिद्धान्तों- चाहिए कि एकताकी हिमायत करनेवाले दिगम्बर की जाँच-पड़ताल भी अवश्य होनी चाहिए; भाइयोंके विरुद्ध दूसरे दिगम्बरी भाइयोंको उत्तेपरन्तु ' मैं सच्चा और तू झूठा' केवल इसी जित करके परस्पर शत्रुता उत्पन्न करनेका काम कदाग्रहकी तुष्टिके लिए जो धार्मिक विवाद और लालाजीने शुरू कर दिया है । इतना ही नहीं शास्त्रार्थ आदि होते हैं, इस समय हमें उन्हें किन्तु आपने 'भारतजैनमहामण्डल , जैसी तिरस्कारकी दृष्टिसे देखना चाहिए और जहाँतक संस्थाके सुशिक्षित और प्रतिष्ठित सभ्योंपर भी इस बन सके उन्हें दबा देना चाहिए। जनसमाजमें एकताकी हिमायतके अपराधके बदले निन्दाके जिसे जो धर्म अच्छा लगे उसे वह श्रद्धापूर्वक वाण छोड़कर कलहका बीज बो दिया है। पाले और दूसरे लोग अपनी रुचिके अनुसार ६ पंच नियत करनेकी सम्मति जिस धर्मको पालते हों उनके प्रति
देनेवाले सज्जन । सहिष्णता रक्खे-माध्यस्थ्य वृत्ति रक्खे, यही सबसे 'तीर्थोंके झगड़े मिटाइए' शीर्षक अपीलमें अच्छा मार्ग है । मनुष्य जबसे समाज बना कर जिन सज्जनोंके हस्ताक्षर हैं वे दिगम्बर और श्वेतारहना सीखा है, तबसे समाजकी रक्षाके लिए म्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित उसे इस नीतिका अवलम्बन करना ही पड़ा है। पुरुष हैं। इस कार्यमें शेठपार्टी भी शामिल है यदि कोई मनुष्य औरोंके धर्मोके प्रति सहिष्णुता और सुशिक्षित-पार्टी भी शामिल है । अपीलमें नहीं रख सकता है, तो वह समाजके लिए एक ऐसी एक भी सही नहीं है जिसने आँखकी शर्मसे भयंकर जन्तु है, समाजके हितके लिए उसे या आग्रहसे अपने हृदयके विरुद्ध सम्मति दी सभाजमेंसे दूर कर देना चाहिए । आश्चर्यकी हो। पर इस अपीलके विरुद्ध हमारे लालाजीने बात तो यह है कि लालाजी जिस धर्मको कार्ट- जो पेम्फलेट निकाला है उसमें हृदयसे सहियाँ के द्वारा सत्य सिद्ध कराना चाहते हैं उसी देनेवाले शायद दो चार सज्जन भी न होंगे। धर्मको स्वयं इतना भी नहीं जानते हैं जितना पर,
- पर, सहियोंमें जिन सेठ सज्जनोंके नाम छपे हैं
उन्हें, या उनकी तरफसे सही कर देनेवाले एक साधारण विद्याथा जानता है। इस पर मा पर धर्मविषयक गहरी समझ न रखनेवाले मुनीम आपका यह हौसला है ! मालूम नहीं यह लेख साहबोंको, दोष देनेके लिए मैं तैयार नहीं हूँ। आपका ही है या आपकी आड़में किसी क्योंकि यह सारी ही बाजी अकेले लालाजीकी दसरे धर्मात्माकी दिखलाई हुई कारीगरी है। खेली हुई है और आपहीने बड़े प्रयत्नसे दवाव
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