Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 98
________________ AmARImammmmm जैनहितैषीHiftinimunting बहुतसी बातें मुझे मालूम हुई हैं जिन्हें उन्हें केवल तीर्थोकी मालिकी या पूजाके में प्रकट नहीं कर सकता; परन्तु इतना हकका ही निर्णय नहीं चाहिए, वे तो यह तो निस्सन्देह होकर कहा जा सकता है कि जजमेंट चाहते हैं कि दिगम्बरसम्प्रदाय ही प्रिवी कौंसिलसे फैसला मिल जानेपर भी सबसे पहला और सच्चा धर्म है और श्वेताम्बर अदालतोंके धक्के खानेका काम जैनोंके भाग्यसे पीछेसे निकला हुआ झूठा धर्म है और इस टलनेका नहीं । इस तरह वर्षोतक कष्ट भोगकर, बातका जजमेंट देनेकी लालाजी जितनी लाखों रुपयोंका पानी बनाकर, परस्पर एक दूस- योग्यता बेचारे देशके नेताओंमें कहाँ ? रेको निर्बल बनाकर, जब दोनों पक्ष थक जायँगे जान पड़ता है लालाजीके कानमें स्वयं तब अन्तमें आपसमें ही निबटेरा करनेको लाचार श्रीमहावीर स्वामी आकर कह गये हैं कि होंगे । इससे तो यही अच्छा है कि अभीसे श्वेताम्बर हमारे संघमें नहीं हैं और वे मिथ्याती पंचोंके द्वारा मामला ते करा लिया जाय और हैं । लालाजी कहते हैं-" क्या मिथ्यात्व सम्यमेल-मिलाप बढ़ाया जाय । वणिक जैसी सयानी क्त्व मिलनेसे महावीरकी एकता अथवा जाति भी यदि इस ओर ध्यान न देगी तो और मुक्तिका मार्ग हो सकता है ? कदापि नहीं .... कौन देगा ? जल आग्निकी अथवा अंधकार प्रकाशकी ४ देशके नेता जैनधर्मके गौरवकी एकता हो सकती हो तो दिगम्बर-श्वेताम्बररक्षा अवश्य करेंगे। की एकताकी कल्पना भी हो सकती है, अन्यथा देशके नेता भारतवर्ष के ही वातावरणमें नहीं । ” ( लालाजी जोशमें आकर गये तो थे जन्मे हैं और भारतवर्ष में ही बडे हुए हैं. इसलिए श्वेताम्बर धर्मको अन्धकार कहने, पर लिख गये उनमें धर्मभावना अवश्य होगी और जिनमें धर्म- अपने ही धर्मको अन्धकार ! ) लालाजी या उनके भावना है वे अजैन होने पर भी जैनधर्मका गौरव 'धर्मात्मा ' लेखक जिस हृदयसे ये शब्द लिख किस बातमें है इस बातको सुगमतासे समझ हरे हैं उस हृदयको मैं बाँच सकता हूँ। आप सकेंगे और उस गौरवकी रक्षाका भी वे स्वदेश- इन झगड़ोंसे दिगम्बरधर्मकी प्राचीनता और सत्यता प्रेम और धर्मभावनाके कारण अवश्य खयाल और श्वेताम्बरधर्मकी अर्वाचीनता तथा . असरक्खेंगे। इसके सिवाय आजकल जैनधर्मसम्ब- त्यता कोर्टाके द्वारा सिद्ध कराना चाहते हैं। न्धी पत्र, पुस्तक, शास्त्रादि अँगरेजीमें भी प्रका- यदि मैं भूलता नहीं होऊँ तो एक केसमें ऐसा शित होने लगे हैं और अजैन भारतवासी जैन- प्रयत्न सचमुच किया भी गया है। सरकारी सभाओंमें जैनतत्त्वसम्बन्धी व्याख्यान भी देने अदालतोंसे इस प्रकारकी आशा करना, इसे लगे हैं, ऐसी दशामें भारत के सारे ही नेता जैन- 'धर्म भोलेपन के सिवाय और क्या कह सकते भावनाओंसे बिल्कुल ही कोरे हैं, ऐसा कहना हैं ! जब मैं आपसमें सुलह और शान्ति करातो अपनी अज्ञानता प्रकट करना है । पर नेके लिए खड़ा हुआ हूँ, तब एक तटस्थ पुरुषके लालाजीको अपनी अज्ञानता प्रगट होनेकी क्या रूपमें मैं इस बातका इशारा भी नहीं कर सकता परवा है, उन्होंने तो देशके नेताओंमें जो हूँ कि कौन सम्प्रदाय पहला है और कौन पीछेका जैनधर्मसम्बन्धी अज्ञानताका दोष निकाला है, और तीर्थोकी मालिकी तथा पूजनके है, वह एक दूसरे ही आशयसे निकाला है। हकके झगड़ेसे 'कौन धर्म अधिक प्राचीन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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