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तीर्थोंके झगड़े मिटानेका आन्दोलन ।
श्रीयुत सम्पादक महाशय- जैनहितैषी,' आपके पाठकोंको स्मरण होगा कि 'हितैषी' वर्षीय दिगम्बरजैनतर्थिक्षेत्रकमेटीके महामंत्री के गतांकमें-ठीक क्षमावनीके पवित्र दिनको-एक लाला प्रभुदयालजीने एक पेम्फलेट मेरी अपीलके समग्र जैनसमाजके कल्याणकारी आन्दोलनका विरुद्ध हाल ही प्रकाशित किया है। यह लेख मैंने प्रारंभ किया गया था । उक्त अंकमें एक अपील- उसीको पढ़कर लिखा है । मुझे आशा है कि आप जिसका कि शीर्षक तीर्थोके झगड़े मिटाइए' इसे इसी अंकमें प्रकाशित करनेका प्रयत्न करेंगे। था-की गई थी और उसकी कई हजार प्रतियाँ [यद्यपि निम्नलिखित लेख दिगम्बरी हिन्दी और गुजराती भाषामें जगह जगह पहुँ- भाइयों और इसके बादका दूसरा लेख * चाई गई थीं । इसके सिवाय पत्रव्यवहारद्वारा, श्वेताम्बरी भाइयोंको उद्देश्य करके लिखा गया पर्यटन द्वारा और मुलाकात आदिके द्वारा है, तथापि दोनों ही लेख दिगम्बर-श्वेताम्बर भी इस विषयमें जो कुछ प्रयत्न बन सकता दोनों ही सम्प्रदायके भाइयोंके लिए एक सरीखे था वह किया गया था, किया जा रहा है और उपयोगी हैं । दूसरा लेख श्वेताम्बर 'जैनकाआगे भी किया जायगा। मेरी समझमें किसी न्फरेंस हेरल्ड' के खास अंकमें प्रकाशित हुआ है भी अपीलकी या आन्दोलनकी सफलताकी और हेरल्डके विद्वान सम्पादकने एक स्वतन्त्र आशा तब की जानी चाहिए जब दूसरी नाट द्वारा उसका अनुमोदन किया है। ] ओरसे भी उसकी प्रतिध्वनि उठे-उससे मिलती हुई या उससे विरुद्ध आवाज सुनाई अज्ञानताके मायाजालसे बचो। पड़े। यह जानकर मुझे बहुत सन्तोष हुआ धर्म, सत्य, सम्यक्त्व, ये शब्द कितने मधुर है और मेरे उत्साहमें खूब ही वृद्धि हुई है कि हैं। पृथिवीके प्रत्येक मनुष्यको इन तत्त्वोंकी मेरी उक्त अपीलकी प्रतिध्वनि एक तरफसे नहीं आवश्यकता है और इन्हींकी खोज तथा प्राप्तिके किन्तु दो तरफसे उठी है । एक ओरसे तो मुझे लिए प्रत्येक मनुष्य व्याकुल रहता है । परन्तु दिगम्बर-श्वेताम्बर धनिकों, लेखकों, व्याख्या- प्रकृतिका यह एक नियम है कि जो चीज ताओं और साधारण पुरुषोंके सैकड़ों सहानुभूति- जितनी ही अधिक कीमती होगी, उसकी प्राप्तिमें दर्शक पत्र और कितने ही त्यागी महात्मा कठिनाइयाँ भी उतनी ही अधिक होंगी । कोई
और मुनियोंकी विना माँगी सहानुभूति प्राप्त भी कीमती चीज अनायास ही, दुःख सहन किये हुई है और दूसरी ओरसे एक विरुद्ध पक्ष बिना, प्राप्त नहीं होती । तदनुसार धर्म, सत्य भी मेरे सम्मुख कमर कसके खड़ा हुआ है। और सम्यक्त्व ये सहज ही प्राप्त होनेवाली इसकी जरूरत भी थी। क्योंकि सत्यका यथा- दसरा लेख आगामी अंकमें प्रकाशित किया थेस्वरूप फैलानेमें विरुद्ध पक्ष बहुत बड़ा सहायक जायगा । स्थानाभावके कारण हम उसे इस अंकमें होता है। आपको मालूम हुआ होगा कि भारत- प्रकट न कर सके। -सम्पादक ।
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