Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 48
________________ ४६६ CATIALAMBAILA B LALIBAALI जैनहितैषी। amummmmmmmm बसुकुलके बाद प्रसिद्ध ऐतिहासिक व्यक्ति मिलती हैं और विश्वसनीय हैं । यदि मिहिरउसका पुत्र मिहिरकुल राजा हुआ, जिसने कुल कल्हणके लिखे अनुसार १२०० ७०४ से ६३४ बी. सी. तक ७० वर्ष वर्ष पहले हुआ समझा जाय, तो राजतरंराज्य किया । राजतरंगिणीके बाहर इसके गिणीमें कुछ ऐसी अलौकिक बातें भी मिलनी सम्बन्धमें जो प्रमाण मिले हैं, उनसे यह चाहिए थीं; जैसी और राजाओंके विषयमें विश्वास होता है कि वह छट्टी सदी ए. कही गई हैं और जिनपर किसीका विश्वास डी. के पूर्वार्धमें काश्मीरमें राज्य करता था। नहीं होता; क्योंकि १२०० वर्षों में ऐसी यह वहीं श्वेतांग हूण है, जिसके सम्बन्धमें बातोंका ऐसे प्रसिद्ध राजाके सम्बन्धमें गढ़ा हम इतना पढ़ते हैं। अपने पिता तोरामणके जाना संभव ही नहीं, बल्कि स्वाभाविक भी है। बाद ५१५ ए. डी. में उसके राज्यका उत्त- डाक्टर फ्लीटका कहना है कि, मिहिरकुलके राधिकारी होनेकी बात पहले पहल डाक्तर राज्यका विस्तार काबुल वैलीसे मध्य भारत फ्लीटने शिलालेखादिके आधारोंपर निश्चय की तक था और जब ५३० ए. डी. के लगभग थी। समझमें नहीं आता, किस प्रकार कल्ह- वह अपने शत्रुओं द्वारा वहाँसे निकाल गने वसुकुलको मिहिरकुलका पिता और भगाया गया, तब उसने काश्मीरमें आकर उसके राज्य करनेका समय १२०० वर्ष शरण ली और वहींसे वह छः वर्षों ( ५४४ पहले ठहराया है। निस्सन्देह इस जगह से ५५० ) तक उसे पुनः प्राप्त करनेका कल्हणने अन्दाज, किम्बदन्ती अथवा किसी उद्योग करता रहा । ऊपर मैंने उसके छट्ठी अनैतिहासिक तथा अविश्वसनीय प्रमाणसे सदीमें होनेका जो दूसरा प्रमाण दिया है, काम लिया है । क्योंकि प्रसिद्ध चीनी यात्री उसके उत्तरमें राजतरंगिणीमें वर्णन किया हुयेनसंग तो उसकी क्रूरता और अत्याचा- हुआ उसके विस्तृत विजयका वृत्तान्त रोंका वर्णन करता ही है, उसके पहलेका पेश किया जासकता है। पर स्मरण रहे कि, एक दूसरा चीनी यात्री भी जिसका नाम संगयन मुजमालुत-तवारीखमें भी इसका वर्णन सुरक्षित था, मिहिरकुलसे स्वयं भेट करनेका वृत्तान्त है। उसकी क्रूरताके दो एक उदाहरण जो लिखता है । इसमें उसने उसे क्रूर राजाकी राजतरंगिणीमें दिये हुए हैं, और जिनका उपाधि दी है । यह बात भी छट्ठी सदीकी चीनीयात्री भी जिक्र करते हैं, पाठकोंके विनोही है। इससे स्पष्ट है कि मिहिरकुलका दार्थ यहाँ दिये जाते हैं । एक वार वह समय छठी शताब्दीके सिवा दूसरा चन्द्रकुल्या नामक नदीकी धाराको दुसरी नहीं हो सकता । दूसरी बात यह भी ओर बहा लेजानेके अभिप्रायसे प्रयत्न कर है कि कल्हणने उसके सम्बन्धमें जितनी रहा था कि, रास्तेमें उसे एक ऐसी चट्टानका बातें लिखी हैं सभी इन यात्रियोंके वर्णनसे सामना करना पड़ा, जो टससे मस नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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