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काश्मीरका इतिहास ।
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होती थी । स्वप्नमें उसे मालूम हुआ कि, यह चट्टान पतिव्रता स्त्रीके सिवा दूसरेसे नहीं सकती । पतिव्रता होनेका दम भरनेवाली कितनी ही स्त्रियोंने आजमाइश की, पर कुछ फल न हुआ । अन्तमें एक कुम्हारकी चन्द्रावती स्त्रीने उसे स्थानान्तरित कर दिया। इसपर राजाको बड़ा क्रोध आया और उसने उच्च कुलोद्भव तीन करोड़ स्त्रियोंको उनमें पति, पुत्र और भाइयों सहित मरवा डाला ! इससे आनेवाली सम्तानने उसे ' त्रिकोटिहन' की उपाविसे विभूषित किया। हुयेनसंग ने भी काश्मीरमें उसके विषयमें ऐसा कहा जाते सुना था ।
लिखा है कि जब वह हिन्दुस्थानको विजय कर काश्मीर लौट रहा था, तब उसने रास्तेमे पर्वतसे गिरे हुए एक हाथीको आलाप करते सुना । उससे वह इतना मुग्ध हुआ कि, उसने अपने सौ हाथियोंको पहाड़परसे कई हजार फुट नीचे गिराये जाने की आज्ञा दी । अनु"संधान करनेसे इस स्थानका पता 'पीर पाँजाल' पासके पास लगा है । इसे लोग ' हस्तिभंज कहते हैं । संभवतः यह वही स्थान है । यह ब्राह्मणधर्मका पोषक और बौद्धका विनाश. कर्त्ता था । इसने कितनी ही बौद्धसंस्थायें नष्ट भ्रष्ट कर दीं । इसकी तरह बहुत कम राजाओंने मनुष्यहत्या की है ।
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उसके बाद उसका लड़का बक सिंहास - नारूढ हुआ और उसने ६३४ बी. सी. से ५७१ बी. सी. तक ६३ वर्ष राज किया। वह
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अपने पिताकी तरह क्रूर और निर्दय न था । वह बड़ा धर्मात्मा और दयालु राजा हुआ । उसने कई मन्दिर बनवाये और गाँव बसाये । पर न मालूम क्यों उसकी मृत्यु एक डाइनके हाथसे हुई । कल्हण के समयमें भी यह बात काश्मीरियों में प्रचलित थी । उसके बाद उसीके वंशके क्षितिनन्द, वसुनन्द, द्वितीय नर और अक्ष नामक चार राजे हुए, जिन्होंने ५७१ से ३६९ बी. सी. तक २०२ वर्ष राज्य किया । चूँकि कल्हणने एक ही वाक्यमें इन्हें समाप्त कर दिया है, इसलिए डाक्टर स्टाइनका अनुमान है कि ये अनैतिहासिक व्यक्ति हैं ।
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अक्षके बाद उसका पुत्र गोपादित्य राजा हुआ, जिसने ३६९ से ३०९ बी. सी. तक ६० वर्ष राज्य किया । कहा जाता है कि, कई प्रसिद्ध स्थानोंमें उसने अग्रहरोंकी स्थापना की थी । लोगोंका यह भी विश्वास है कि, श्रीनगरसे पूर्व दो मीलकी दूरी पर एक पहाड़ी पर शंकराचार्य्यका जो मन्दिर है, वह इसीका बनाया हुआ है । यह तख्ते सुलेमानके नामसे भी मशहूर है । राजतरंगिणीमें इसे ज्येष्ठेश्वर बतलाया गया है । इसमें आजकल शिवका लिङ्ग है । इस पर्वत - को गोपाद्रि भी कहते हैं ।
गोपादित्य के पश्चात् उसका पुत्र गोकर्ण राजा हुआ, जिसने ३०९ से २९१ बी. सी. तक १८ वर्ष राज्य किया । उसके बाद उसके पुत्र खिणखिल नरेन्द्रादित्यको शासनभार मिला ।
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