Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 65
________________ CHARIBABAMARImammommam सार्वजनिक धनकी जिम्मेवारी सार्वजनिक धनकी जिम्मेवारी ४८३ दिया गया है या सम्पादक महाशयने अपनी लाल पीले हो जाते हैं । वे यह नहीं समझते गाँठसे लगाया है। वंगीय सार्वधर्मपरिषत्- कि यह सेवाधर्म-समाज या धर्मकी सेवा का काम बन्द हुए कई वर्ष हो गये, पर करना-कितना कठिन व्रत है। इसका पालन उसके मंत्री कुमार देवेन्द्रप्रसादजीने अब तक वही कर सकता है जो अपने मान अपमानको. भी उसका हिसाब प्रकाशित नहीं किया। भी समाजको लिए उत्सर्ग कर देता है । अभी कितने रुपये एकटे हुए थे और कितने खर्च जातिप्रबोधकमें बाबू दयाचन्दनीने तीर्थक्षेत्र किये गये, कुछ पता नहीं । सुनते हैं, सेठ कमेटीके सबन्धमें एक नोट लिखा था कि नाथारंगजीने अपनी सहायताके रुपयोंके "तीर्थक्षेत्रकमेटीमें इस समय ५००-६०० विषयमें बहुत कुछ लिखा पढी की, पर रुपया रोज खर्च हो रहा है, उसकी बाकाफल कुछ भी नहीं हुआ । तीर्थक्षेत्र- यदा रिपोर्ट प्रकाशित की जानी चाहिए। जिस कमेटीके महामंत्री लाला प्रभुदयालजीने बाहु- तरह जैनमित्रके हर एक अंकमें दाताओंके बलि स्वामीकी तस्वीरोंका बेचना बन्द कर दानकी रकमें छपती हैं, उसी तरह खर्चकी दिया जाय, इसके लिए दो तीन वर्ष पहले रकमें भी छपनी चाहिए । हिसाब नहीं जैनमित्रमें ‘ भयंकर' आन्दोलन उठाया था छपनेसे यदि हम यह कहें कि रुपयेका और सनते हैं कि लगमग ८००-९०० दुरुयोग किया जा रहा है तो कुछ अनुचित रुपयेका चन्दा एकट्ठा किया था; परंतु उसका नहीं होगा । हम पिछले अंकमें चेता चके भी हिसाब अब तक प्रकाशित न किया गया। हैं और इस बार भी कमेटीको सूचित करते लोगोंको यह भी मालूम न हुआ कि जब हैं कि यदि वह हिसाब प्रकाशित न करे, कोई मुकद्दमा वगैरह नहीं चलाया गया, तब तो जातिसे रुपया माँगना छोड़ दे । भोले केवल पत्रव्यवहारमें या नोटिसबाजी में ही भाले भाइयोंको धोखेमें रखना और उन्हें इतना रुपया कैसे खर्च हो गया । इस तरहके क्या हो रहा है, इसकी कुछ भी सूचना और भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते न देना, धर्मकी आडमें भारी अन्याय करना हैं; जिनसे मालूम होता है कि सार्वजनिक है। यदि इस पर भी कुछ ध्यान न दिया या लोकमतके प्रभावके विना संचालकगण गया तो अगले अंकमें हम इस बातका सुस्त हो जाते हैं और वे अपना उत्तरदायि- आन्दोलन करेंगे कि एक पैसा भी कोई भाई त्व भूल जाते हैं। न दे।" इस नोटको पढकर तीर्थक्षेत्रकमेटीके ___ कोई कोई संचालक लोकमतकी पर- महामंत्री लाला प्रभुदयालजीका मिजाज गर्म हो वा ही नहीं करते हैं। यदि कोई उनसे गया। इसके उत्तरमें उन्होंने जो कुछ लिखा हिसाब किताब या ऐसा ही कोई बात पूछता था अच्छा होता यदि वह उसी रूपमें प्रकाशित है, तो वे अपना अपमान समझते हैं और हो जाता, लोग समझ लेते कि ये सार्वजनिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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