Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 66
________________ ४८४ HINABRAHAL जैनहितैषीNIRTREAml काम करनेवाले महात्मा जनताके अधिकारोंपर समझते कि हमारे दिये हुए रुपयोंका सदु. किस तरह निष्ठुर आक्रमण करते हैं; परन्तु पयोग हो रहा है या दुरुपयोग, वे अभीतक ब्रह्मचारीजीकी कृपासे वह न छपा और उसके · भोले' कहे जाते थे, पर अब लालाजीकी बदलेमें लालाजीको आसोज सुदी २ के व्याख्याके अनुसार 'सभ्य' कहे जायेंगे ! नैनमित्रमें छपी हुई कुछ थोडीसी ठंडी यदि लोग इस नई कल्पनाकी हुई सभ्यताके पंक्तियोंसे ही संतोष करना पड़ा । पर उनमें लोभसे सार्वजनिक कार्यकर्ताओंके एकहत्थी भी आपकी गर्मीकी झलक आ ही गई है। शासनको और भी उच्छृखल कर दें, तो आपने लिखा है "....उन्होंने अपनी योग्य- अच्छा है; लालाजीकी आत्माको अवश्य तानुसार जो चाहे भला बुरा लिखा है ।.... ही इससे सन्तोष होगा। लेखमें इतनी असभ्यताका वाव एक बी. ए. यह बात सच है कि इस समय- मुकमहाशयके द्वारा होना और चलते मुकद्दमे में हमेंके खर्चके लिए चन्देकी आवश्यकताके समाजका अपने धर्मकी रक्षाके लिए तत्पर समय- जातिप्रबोधकके उक्त नोटसे हानि रह उपाय न करने और द्रव्य सहायता न पहुँच सकती है, लोगोंको भ्रम हो सकता है करनेको झूठी बातों द्वारा भड़काना उनको कि हमारे रुपयेका सदुपयोग नहीं हो रहा कहाँतक योग्य है, यह वे स्वयं विचार है; इसलिए वे चन्दा देनेसे इंकार कर सकते देखें।" मालूम नहीं, लालाजी — भला बुरा' हैं; परन्तु इसमें जातिप्रबोधकका तो कोई दोष किसको कहते हैं और ' असभ्यता' की परि- दिखलाई नहीं देता । उसने अपने पिछले भाषा क्या है। लालाजीकी समझमें बी. ए. अंकमें- एक महीने पहले निकले हुए जुलामहाशयकी यह धृष्टता हो सकती है, गुस्ताखी ईके अंकमें-लिखा था कि तीर्थक्षेत्रकमेटीको हो सकती है और गल्ती भी हो सकती है; जबतक मुकद्दमा चलता रहे, अपना हिसाब पर यह समझमें नहीं आया कि 'असभ्यता' प्रत्येक जैनमित्रमें प्रकाशित करते रहना कैसे हो सकती है ? यदि रुपयोंका हिसाब चाहिए । पर जब उसके लिखनेपर कुछ भी प्रकाशित करनेके लिए सूचना करना और ध्यान नहीं दिया गया, लालाजीने पब्लिकके उसके प्रकाशित न करनेपर इस बातका रुपयोंके खर्चका हिसाब प्रकाशित करना आन्दोलन करनेकी इच्छा प्रकट करना कि अपनी शानके खिलाफ समझा, तब जातिलोग तीर्थक्षेत्रकमेटीको एक पाई भी न दें, प्रबोधकको उक्त दूसरा नोट लिखना पड़ा असभ्यता है, तब तो लालाजीके हिसाबसे और उसमें सूचित करना पड़ा कि यदि सभ्यताकी व्याख्या बहुत ही विलक्षण होगी। हिसाब प्रकाशित न होगा तो हम चन्दा जो लोग आँख बन्द करके रुपया देते जाते देनेके विरुद्ध आन्दोलन करेंगे । हमारी समझमें हैं और यह जाननेकी आवश्यकता नहीं नहीं आता कि इसमें बाबू दयाचन्दजीने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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