Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 53
________________ KATARIOMATALAIMIMARITALIMATALALITD मूक्तिमुक्तावली और सोमप्रभाचार्य । CuffinityLETYLEONEtitHILAYERNETYPTETTETrinition ४७१ पाठक जानते हैं कि, यह ग्रंथ सामान्य म्बर विद्वान्का बनाया हुआ देखनेमें नहीं और हितकर उपदेश देनेवाला है और इसी आया । हाँ, सुप्रसिद्ध कविवर श्रीबनारसीदालिए दोनों समुदायोंमें एकसा प्रिय हो रहा सजीका किया हुआ इसका पद्यानुवाद अवश्य है। ऐसी दशामें, इसमेंसे ऐसे प्रमाण नहीं दिगम्बर-साहित्यकी शोभा बढ़ा रहा है। मिल सकते कि जिससे इसका संप्रदायत्व कविवरजीकी यह कृति बहुत ही उत्तम निश्चित किया जाय * । जो कुछ विचार और प्रशंसनीय है । जितना आनन्द मूल किया जा सकता है वह केवल इसके अन्तिम ग्रन्थके पाठसे आता है उतना ही इस पद्यपरसे-जिसमें कर्ताने अपना तथा अपने अनुवादसे भी। हमारा अनुमान तो यह गुरु और दादा-गुरुका नामोल्लेख किया है। कहता है कि कविवरजीके इस सुप्रयासने ही दिगम्बरसंप्रदायमें, इस ग्रंथको आदर अभजदजितदेवाचार्यपटोदयाद्रि ामणिविजयसिंहाचार्यपादारविन्दे । दिलाया है और तत्पश्चात् ही उक्त समुदायमें मधुकरसमतां यस्तेन सोमप्रभण इसके पठन पाठनका प्रचार हुआ है । व्यरचि मुनिपनेत्रा सूक्तिमुक्तावलीयम् ॥ ऐसा न होता तो कविवरजीके पूर्ववर्ती अर्थ स्पष्ट ही है कि, श्रीअजितदेव नामक किसी विद्वानकी की हुई कोई टीका टिप्पणी आचार्यके पदरूप उदयाचल पर सूर्यसमान अवश्य उपलब्ध होती; जैसा कि श्वेताम्बरविजयसिंहसूरि हुए; उनके चरणरूप कमलों- साहित्यमें देखा जाता है । में भ्रमरकी उपमाको धारण करनेवाले सोम - हमारे विचारसे इसकी प्रसिद्धि और प्रीप्रभाचार्य हुए; जिन्होंने इस सूक्तिमुक्तावली 'तिमें मुख्य कारण उपर्युक्त कविवरजी ही हैं। की रचना की । पुराने टीकाकारोंने भी यही एक तो दिगम्बर भाइयोंकी यह श्रद्धा है कि भावार्थ लिखा है। दिगम्बर-विद्वान् भिन्न संप्रदायके किसी भी जहाँ तक हम खोज कर सके, दिगंबर ग्रन्थ पर उसके पोषणार्थ, एक अक्षर भी साहित्य और इतिहासमें इस विषयका जानने नहीं लिख सकता; ऐसी दशामें कविवरजीने लायक कोई उल्लेख नहीं मिला। न किसी जब इसका अनुवाद किया है तब यह ग्रन्थ पट्टावलीहीमें इन आचार्योंका वृत्तान्त मिला हमारे ही संप्रदायका होना चाहिए और और न किसी ग्रन्थमें ही कोई उल्लेख नजर दसरी बात यह है कि खुद कविवरजीने ही आया । * टीका-टिप्पण भी इसपर किसी दिग * एक संस्कृत टीका अभी हाल ही निपाणी ___ * हमने लेखके अन्तमें एक ऐसा प्रमाण दिया (बेलगांव ) में छपी है, जो किसी दिगम्बर विद्वानहै कि जिससे मालूम होता है कि यह ग्रन्थ किस की बनाई हुई है, परन्तु उसमें टीकाकारका नाम नहीं सम्प्रदायका है। है। इस पुस्तककी समालोचना इसी अंकअन्यत्र -सम्पादक। की गई है। -सम्पादक। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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