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जनहितैषी
जोश ज्योंका त्यों कायम था, इसलिए हमने लनमें तुम्हारे शामिल हुए विना पशु और बनियें बननेमें भी अपने महत्त्वको नहीं खोया पक्षियोंको कोई अधिकार न मिल सकेगा । -गुलामीके फन्दोंसे हम अभीतक बहुत कुछ अब तुम्हारे चुप रहनेका समय नहीं है। बचे हुए हैं। परन्तु बिना पानीके पौधा राजनीतिके मैदानमें आओ। लोग तुम्हारी कितने दिन हरा-भरा रह सकता है ? उस बाट जोह रहे हैं। तुम्हारा यह मौरूसीवृक्षके कुछ पत्ते पीले होकर गिर चुके हैं परम्परागत काम है । तुम्हारे ही हाथ लगा
और कुछ समयकी धींगाधींगीके कारण तोड़ नेसे यह छप्पर उठेगा और प्राणीमात्रका लिये जाकर विदेशी बाजारमें राष्ट्र-हानिकर दुःख दूर होगा । तुम्हारे बिना और किसका चाटकी बिक्रीके काममें लाये जाने लगे हैं। ऐसा हृदय है जो इस भारी कामको कर सके ? बहुतसे ऐसे हैं जो शिक्षारूपी रस न मिलनेके यह काम जोशका नहीं; किन्तु जोशके डाट. कारण वृक्षपर ही मुरझा-मुरझा कर रह गये नेका है । यह काम नामकी इच्छासे नहीं हैं और बहुतोंका शरीर रीति-रिवाजोंके हो सकता; इसमें नामकी इच्छाका त्याग कीड़ोंके आक्रमणसे छिन्नभिन्न हो चुका है। करना पड़ेगा । इसमें बड़े भारी स्वार्थत्यागएक बात और भी है । हम और जातियों- की आवश्यकता है-बड़े विशाल हृदयोंकी की अपेक्षा मजबूत ऐक्यसूत्रमें बंधे हुए हैं। आवश्यकता है और इन गुणों पर तुम्हारा लोग हमारे अन्दर अनेकपना देखते हैं सही, सबसे अधिक स्वत्व है । उठो और इस परन्तु वे ऐसी ही भूलमें हैं जैसे कोई वट- नावको शीघ्र ही पार लगा दो; तुम्हारे लिए वृक्षकी अनेक पीढ़ें देखकर उसको अनेक यह बाँये हाथका खेल है । और लोग इस वृक्ष समझ बैठे। हम कितने ही जुदे दिखलाई कामको शारीरिक शक्तिसे किया चाहते हैं दें; परन्तु हम सबमें रस उसी एक ही महा- और इसके लिए अपने कषायभावोंको हथिवीरवृक्षसे प्रवाहित होता है। यार बनाना चाहते हैं, परन्तु वास्तवमें इसकी ___ आजकल स्वराज्यका आन्दोलन बड़े जोर- सिद्धि क्षमासे ही हो सकती है । यह काम शोरसे हो रहा है । देशकी तमाम जातियाँ मनोबलका है, वीतरागताका है, हितैषिताका इस बातको समझने लगी हैं कि बिना स्वराज्य है और ऐसे ही सर्वोच्च लक्ष्यके आप उपासक मिले भारतवर्षका वास्तविक कल्याण नहीं हो हैं। फिर क्यों बिलम्ब कर रहे हो और सकता है। प्यारे जैनी भाइयो! इस आन्दो- तृषातुर भूमिको तरसा रहे हो ?
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