Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 36
________________ जैनहितैषी प्रार्थना (ले०-श्रीयुत पं० गिरिधर शर्मा।) (१) नाथ आपको हम नमते हैं, हाथ जोड़ पैरों पड़ते हैं। आप जानते हैं सब स्वामी, घटघटके हो अन्तर्यामी ॥ वह बल-विक्रम हममें आवे, देख जिसे जग अचरज पावे । सिंह चाटने पग लग जावे, विजयवाद्य सुरवृन्द बजावे ॥ नोट-यह प्रार्थना विद्यार्थियोंको प्रातःकाल पढ़नेके लिए रची गई है। यदि जैनपाठशालाओं और विद्यालयोंके संचालक उचित समझें तो इसे काममें ले आयें । कई संस्थाओंके संचालकोंने ऐसी एक प्रार्थनाके लिए हमसे प्रेरणा भी की थी। -स। हम मानव हैं सद्गुण पावें, सारे दुर्गुण दूर हटावें । कायरताके पास न जावें, वीरपनेको लाड़ लड़ावें॥ निज कर्तव्य कदापि न तज दें, सदा सहारा दीनोंको दें। . लोकलोकमें जीवन भर दें, मुरदोंको भी जीते कर दें। आलसमें नहिं पड़े रहें हम, नहीं खुशामद कहीं करें हम । जिस शाखापर आश्रय पावें, काट उसे नीचे न गिरावें ॥ ___ आजकल जेंटिलमैन ( सभ्य पुरुष ) बहुत ही साधारण शब्द हो गया है; परन्तु जेंटिलमैन असलमें हैं बहुत कम । जटिलमैनीके लिए बाहरी बातोंकी जरूरत नहीं है। अच्छे अच्छे कपड़ों और बड़े बड़े बंगले, कोठियोंकी भी जरूरत नहीं है। असलमें जेंटिलमैन वह है जिसके विचार उदार हैं, उद्देश्य उच्च हैं, सत्य पर जिसका अटल विश्वास है और सत्य ही जिसके जीवनका आधार है, जिसकी आवश्यकतायें बहुत थोड़ी हैं, जिसकी बड़े और छोटे, अमीर गरीब सबके साथ समान सहानुभूति है और जिसको अभिमान छूकर भी नहीं गया । अब बतलाइए, ऐसे आदमी कितने हैं ? आपकी सभामें, आपकी मित्रमंडलीमें कौन कौन इन गुणोंसे विभूषित हैं ? हम ऐसे सैकड़ोंके नाम ले सकते हैं जिनके कोट पतलून बड़े अच्छे बने हुए होते हैं। ऐसे भी बीसो बतला सकते हैं जिनमें बात चीत करने और रहन सहनके तरीके बड़े अच्छे हैं; परंतु जेंटिलमैन बहुत ही कम हैं । यदि कागज कलम लेकर उनके नाम लिखने बैठे तो शायद सौंमें एक दो ही निकलें। -थेकरे । सज धज कर हम अकड़ न जावें, __ आपसमें लड़ यश न नसावें। संशयमें पड़ मति न गुमावें, आसमानमें उड़ें सुहावें॥ विद्या ठौर ठौर फैलावें, गहरे ज्ञान भेद प्रकटावें । भारत गौरव जगमें छावें, सारे जगमें जया कहावें ॥ नहीं लालचोंमें फंस जावें, नहीं किसीसे भय हम खावें। सुदृढ रहे निज धर्म निभावे, हो स्वाधीन सदा सुख पावें॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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