Book Title: Jain Divakar Smruti Granth
Author(s): Kevalmuni
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 20
________________ संदेश राज भवन बंगलौर-५६० ००१ ८ जून, १९७८ मुझे यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन समाज के तत्त्वावधान में सन्त जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज की जन्मशताब्दी मनायी जा रही है और उसके उपलक्ष में एक स्मृति-ग्रन्थ भी प्रकाशित किया जा रहा है । ___ जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज ने १८ वर्ष की किशोरावस्था में ही समाज में व्याप्त दुर्व्यसनों से दुखी होकर वैरागी बनकर जैन श्रमण दीक्षा ग्रहण की थी और तब से लगातार ५५ वर्ष उनके स्वर्गवास तक मानवमात्र की सेवा करते रहे । सन्त होते हुए भी वे महान् राष्ट्रधर्मी व समाजधर्मी थे जिसके कारण सभी कौमों के लोग उनका बड़ा आदर करते थे। मैं आशा करता हूँ कि उनके जन्मशताब्दी समारोह के अवसर पर उनके अनुयायी बन्धु उनके मानवधर्मवादी मिशन को सब प्रकार का बढ़ावा देने का दृढ़ संकल्प करके उनके चरणों पर अपनी श्रद्धा अर्पित करेंगे। उनके जन्मशताब्दी समारोह की सफलता के लिए मैं अपनी शुभकामनायें भेजता हूँ। गोविन्द नारायण (राज्यपाल, कर्णाटक) RAJ BHAVAN Madras-600022, 31st May. 78. Dear Shri Surana, I am glad to know that you are publishing Shri Jain Divakar Smruti Granth. Pujya Shri Chauthmalji Maharaj is well known for his numerous social services. His mission is a great inspiration to many. I wish the Granth and the function great success. Yours sincerely, (Prabhudas B. Patwari) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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