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बनाकर आगममर्मज्ञ सरल एवं शांत चिन्तक डॉ. सागरमलजी जैन के मार्गदर्शन में इस वैराग्य प्रधान ग्रंथ पर विशालकाय शोधप्रबन्ध लिखकर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। मेरे लिए यह अत्यन्त ही प्रमोद का विषय है अब उनका यह शोध प्रबन्ध प्रकाशित हो रहा है, उनका यह प्रयत्न सफल हो, ऐसा मेरा शुभाषीश है।
साथ ही पार्श्वमणितीर्थ के मूलनायक पार्श्वप्रभु से यह प्रार्थना करती हूँ, उनके इस ग्रंथ का स्वाध्याय कर जन-जन मोक्षाभिमुखी होकर साधना और आराधना से जुड़े। मेरी भी यही अन्तिम अभिलाषा है कि इसमें प्रतिपादित सम्यक् आराधना से जुड़कर मैं भी मुक्ति रूपी लक्ष्मी का वरण करूँ।
संवेग ही है सम्यक्-दर्शन, जिससे मिटता भवभ्रमण रुप क्रन्दन। यह मिथ्या आग्रहों से मुक्त बनाता, जीवन में आत्मिक आनन्द लाता।।
- साध्वी सुलक्षणा श्री
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