Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सम्पादकीय
'तप' सिर्फ हमारी अध्यात्म साधना का ही नही, किंतु सपूर्ण जीव-जगत् का प्राण तत्व है । 'तप' के विना मनुष्य जीवन जीने के योग्य भी नही बन सकता । तप जीवन की ऊर्जा है, सृष्टि का मूल चक्र है। सेवा, सहयोग, तितिक्षा, स्वाध्याय, आदान-प्रदान, भोजन-विवेक ये जो तप के अग हैं क्या वे ही जीवन के अग नहीं है ? उनके विना जीवन का अस्तित्व ही क्या है ? इसलिए मैं मानता हूं-तप ही जीवन है। तप से ही मनुष्य, जीवन जीने की क्षमता प्राप्त कर सकता है-यह मेरी तप सम्बन्धी निष्ठा है।
तप की महिमा, भारतीय धर्मों मे ही नहीं, किंतु विश्व के प्रत्येक धर्म मे, यहा तक कि धर्म को नहीं मानने वाले विद्वानो व विचारको के शब्दो मे, भावनाओ मे भी गूजती रही है। किंतु अधिकाश धर्मप्रवक्ताओ एव विचारको ने तप के मम्बन्ध में कोई व्यवस्थित चिन्तन एव उसकी साधना विधि का वैज्ञानिक नित्पण करने का कष्ट नहीं किया । ___ जैन धर्म, चू कि एक वैज्ञानिक धर्म है, एक व्यवस्थित साधनामार्ग है, और चिन्तन-मनन का पक्षपाती है, इसलिए धर्म के प्राण तत्व 'तप' के सम्बन्ध मे वह मौन रहे, या अव्यवस्थित रहे-यह कैमे संभव था । यही कारण है कि 'तप' को एक जीवनव्यापी, सर्व-बाही रूप देकर जैन धर्म ने तप के विषय