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तेजोमय नक्षत्र भाचार्य स्थूलभद्र ८६
चासना का ज्वार पा न सगेर पर नाज नज्जा एव शृगार । वह बार-वार भयं स्थूलभद्र का नाम लेकर यह रही धीन्थूलगढ़ विद्या नान्य पुमान् कोपीत्यहर्निशम् ।" आज दुनिया में आय न्थूलभद्र जैगा उत्तम पुरुष कोई नहीं है ।
विभाव में उपस्थित मगध गणिया को प्रसन्न करने के लिए रविक ने वाण फोन ने सुदूरवर्ती बासनी के गुच्छ को तोड़कर उसे उपहृत किया । साथ वे वाण-कौन मे कोना को कुछ भी आश्चर्य जंगा नही लगा । वह एक अत्यन्त प्रवीण नागेो नृत्यकता में उमस चातुव अनुपम या उसने नग्न केटेर पर नू की नोक में अनुरवून गुवान की पडियो का फैनाकर उसपर नृत्य किया। अपनी ननोनी देह को कोशा ने इस तरह गाध लिया या कि उसने पान के भार ने नपं राशि का एक भी दाना इधर से उधर नही हुआ ओन मूई की नोक की पट हो उसके चरणो को घायल कर सकी। रविक प्रसन्न होकर बोला- "सुभगे | तुम्हारे इन नृत्य- कोशन पर प्रसन्न होकर में तुम्हे कुछ उपहार देना चाहता हूँ ।" गणिका ने कहा कि मेरी दृष्टि मे तुम्हारा यह आम्रपान के उदर नहीं है और न मेरा वह नृत्यकौन हो, पर स्थूलभद्र जंगा ब्रह्मन पाउण प्रस्तुत करना महादुष्कर है । मेरा निवाला में आर्थ न्यूलभद्र ने पूरा पावन बिताया। पमपूर्ण भोजन किया पर कज्जल की कोठी में दो आय भद्र की नफेद चहर पर एक भी दाग न जगा । जाग पर भी मनन पिघला, ऐसे महापुरुष नमन विश्व के द्वारा यदनीय होते हैं।" लाभ की महिमा गणिका के द्वारा सुनकर परम प्रसन्नता को
हृदय में सात्विक मावो का उदय हुआ, विरक्ति की धारा वही एव पाटलिपुत्र में आर्य सभद्र के पास पहुंचकर विक ने दीक्षा ग्रहण कर ली । न्यूनभद्र के जोवन ने पावन प्रेरणा पाकर न जाने कितने व्यक्ति अध्यात्ममाग के पथिक बने थे ।
नन्द राज्य के यशस्वी महामान्य शाटान की नो गन्तानें जैन शासन में दीक्षित हुई श्रीमान पुत्रिया एव दो पुत्र । इनमे आायं स्थूलभद्र ही गवसे ज्येष्ठ थे । स्टाल परिवार में सर्वप्रथम दीक्षा सरकार भी उनका ही हुआ था। आचार्य पद के महिमामय दायित्व को भी भार्य म्युलभद्र ने अत्यन्त दक्षता के माथ वहन किया । श्रमण मघ मे आयें महागिरि एवं सुहम्ती जैसे प्रभावी आचार्य उनके प्रमुख शिष्य थे।"
आय स्थूलभद्र बहुत दीर्घजीवी आचार्य थे । मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त का अभ्युदय, मौर्य साम्राज्य की स्थापना उनके शासनकाल मे हुई । महामेधावी चाणक्य को 'आचार्य म्यूल मंत्र के चरणो की उपासना का अवसर मिला । नन्द-साम्राज्य के पतन की दर्दनाक घटना भी इमी युग का मर्मान्तक इतिहास है । तीसरे