________________
क्रान्ति-चरण आचार्य कालक (द्वितीय) ११६ खिन्न था एव पख कटे पक्षी की भाति सर्व साधन सामग्री-विहीन लेकर छटपटा रहा था।
मालव प्रदेश पर शको का राज्य स्थापित हुआ। आचार्य कालक ने वहिन सरस्वती को पुन दीक्षा दी और स्वय ने प्रायश्चित्तपूर्वक मनोमालिन्य एव पापमय प्रवृत्ति का शोधन किया।"प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण पूर्ववत् सघ का नेतृत्व आचार्य बालका सभालने लगे।
भृगुवक्ष (भरोच) लाट देश की राजधानी थी। वहा के महान् शामक वलमिन और भानुमित्र थे। वे आचार्य कालय के भानजे थे। आचार्य कालक को विजयी बनाने में उनका पूरा सहयोग था।
अवन्ति पर चार वर्षों तक शको ने शामन पिया। भारत भूमि को विदेशी सत्ता से शामित देखकर चलगिन एव भानुमित्र का पून उवल उठा । उन्होने मालव प भाक्रमण किया एवं शक सामन्ती को बुरी तरह से अभिभूत कर वहा मे उनके शामन का मूलीच्छेद कर दिया। उज्जयिनी का पावन प्रागण स्वातन्त्र्य की रम्य रश्मियों में चमक उठा। बलमित्र वहा का शामक बना। शकोच्छेदक एव इतिहाम-प्रसिद्ध तेजस्वी शामक वीर विक्रमादित्य गह बनमिन ही था।
भानजे बलमित्र और भानुमिन की विशेष प्रार्थना पर महान् प्रभावक आचार्य कालक ने भृगु कक्ष (मगेंच)में चातुर्माग किया। वलमित्र एव भानुमिन की वहिन का नाम मानुश्री था। वलभानु भानुश्री का पुन था । परमविरक्ति को प्राप्त वलभानु को आचार्य कालय ने दीक्षा प्रदान की थी। इससे वलमित्र और भानुमिन प्रकुपित हुए और उन्होंने अनुकून परिपह उत्पन्न कर आचार्य कालक को पावमकाल मे ही विहार करने के लिए विवश कर दिया था। प्रभावक चरित के अनुमार विहार का निमित्त राजपुरोहित या। भागिनेय बल मित्र व भानुमित्र की अगाध श्रद्धानाचार्य कालक के प्रति घी। राजपुरोहित राजमम्मान प्राप्त आचार्य कालक से जलता था। एक दिन शास्त्रार्थ में आचार्य कालक से पराभव को प्राप्त राजपुरोहित ने उनके निष्कासन की योजना मोची। उमने बलमिन और मानुमिन से निवेदन किया-"राजन् । महापुण्योभाग आचार्य कालक के चरण हमारे लिए वदनीय है । पथ पर अकित उनके चरणचिह्नो पर नागरिको के पैर टिकने से अथवा उनका अतिक्रमण होने से गुरुराज की आशातना होती है। यह आशातना राज्य के लिए विघ्नकारक है। इसमे राष्ट्र में अमगल हो सकता है। सरलहृदय भ्रातृदय के हृदय में निकटवर्ती राजरोहित की यह वात जच गयी पर पावस काल मे आचार्य कालक का निष्कामन होने से महान अपवाद का मय था । इस अपवाद से बचने के लिए राजा का आदेश प्राप्त कर राज पुरोहित ने घर-घर मे आधाकर्मदोप निष्पन्न गरिष्ठ भोजन आचार्य कालक को प्रदान करने की घोपणा की। नागरिक जनो ने वैमा ही किया। एपणीय आहार-प्राप्ति के अभाव में शासन-व्यवस्था की