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विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्र स्वामी १४३
सिंहगिरि अवन्ति के उद्यान में स्थित थे। आहागेपलब्धि की सभावना न देख तप पूत्त, क्षमाप्रधान, परोपह विजेता, समता रस लीन अध्यात्मपीन श्रमणो ने उपवास व्रत स्वीकार कर लिया।
यह सामयिक अतिवृष्टि प्रकृति का प्रकोप नही देवमाया थी। वाल मुनि वज्र के चरित्ननिष्ठ जीवन की परीक्षा के लिए पूर्व भव के मित्र भक देवो ने कुतूहलवश इस सधन धनाधन घटा पटल का निर्माण किया था।
वर्षा के रुकने पर उपासक वणिक् आरं सिंहगिरि के पास आए और गोचरी की प्रार्थना की। आचार्य की अनुमति या वनमुनि माधुकरी वृत्ति के लिए अक्लात अखिन्न मनमा उठे एव द्वार तक पहुचकर वे रुक गए । नन्ही-नन्ही वूदे तब तक आ रही थी। वर्षा पूर्ण रुक जाने पर ईर्या समितिपूर्वक मद-मद अनुद्विग्न गति से चलते हुए सयोगवग वे उमी बस्ती में प्रविष्ट हुए जो देव-निर्मित थी। मानव के स्प मे देव गण वाल मुनि वज्र को अपने गृह में ले गया एव भक्तिभावपूर्वक दान देने को प्रस्तुत हुआ।
वाल मुनि मार्य वज भिक्षा की गवेपणा में जागरक थे। इस अवसर पर प्रदीयमान सामग्री को अशुद्ध भाधाकर्मी दोपयुक्त देवपिण्ड जानकर उसे लेना सवथा अस्वीकार कर दिया। भिक्षा मे द्रव्य से कुष्माण्डपाक क्षेत्र से मालव देश मे प्राप्त हो रहा था । काल ने ग्रीप्म काल का समय था। भाव की दृष्टि से अनिमिप नयन, अम्लान कुसुम मालाधारी व्यक्ति भोज्य मामग्री प्रदान कर रहा था। दानप्रदाता के चरण धरा से ऊपर उठे हुए थे। इस प्रकार का दान मानव वशज से मभव नही था। कुष्माण्ड पाक नीम काल मे और मालव देश में सर्वथा अप्राप्य था। आर्य वज्र की दृष्टि में यह जाहार देवपिण्ड था तथा देवता के द्वारा दिया जा रहा था। माधु के लिए देवपिण्ड आहार सर्वथा अकरप्य है, यह जान वज्र मुनि ने महान् क्षुधा मे वाधित होने पर भी उसे ग्रहण नहीं किया।
ज़ भक देवो ने प्रकट होकर वज्र मुनि के उच्चतम साधनानिष्ठ जीवन की प्रणसा की एव नाना स्प निर्मात्री वैक्रिय विद्या उन्हे प्रदान कर वे लौटे। ____ आर्य वज्र के सामने आहार-पानी की गवेपणा मे उत्तीर्ण होने का एक अवसर और प्रस्तुत हुआ। ग्रीष्म ऋतु के मध्याह्नकाल मे माधुकरी वृत्ति में व्यस्त वालमुनि वज्र को देसफर ज भक देव पुन धरती पर वैक्रिय शक्ति द्वारा मानव-रूप वनाकर आए एव प्रार्थनापूर्वक वज्र मुनि को देव-निर्मित गृह मे ले गए। श्रावक म्प मे प्रकटीभूत जू भक देवो ने मुनि को दान देने के लिए घृत निष्पन्न मिष्टान्न (मिठाई) से भरा थाल प्रस्तुत किया। थाल मे शरदकालीन मिष्टान्न थे। ग्रीष्म ऋतु में इस प्रकार की मिष्टान्न सामग्री को देखकर वज्र मुनि सभल गए। उसे देवपिंड समझकर उन्होने ग्रहण नही किया।
भाग्यवान् व्यक्तियो को पग-पग पर निधान मिलता है। आर्य वज्र स्वामी के