________________
२४. अमित प्रभावक आचार्य अमितगति
अगाध पाडित्य के धनी, उत्कृष्ट कवित्व-शक्ति के साधक आचार्य अमितगति माथुर सघ के थे। वे आचार्य माधव सेन के शिष्य थे। उनके माता-पिता के सम्बन्ध में सामग्री उपलब्ध नहीं है। उनका जन्म वि० स० १०२० के आसपास अनुमानित किया गया है।
आचार्य अमितगति ने अपनी स्फुरणशील मनीपा के द्वारा साहित्य की महान् साधना की। उनके द्वारा रचित ग्रन्यो मे सुभापित रत्न सदोह, धर्म परीक्षा, पच सग्रह, उपासकाचार भावना, द्वाविंशतिका, सामायिक पाठ, अमितगति थावकाचार आदि प्रमुख हैं।
आचार्य अमितगति का सम्पूर्ण साहित्य संस्कृत भापा में है। संस्कृत भाषा पर आचार्य अमितगति का पूर्ण आधिपत्य प्रतीत होता है। उनके विशालकाय साहित्य से गभीर ज्ञान की सूचना भी मिलती है।
काव्य-रचना शक्ति अमितगति की अत्यन्त विलक्षण थी। उनका धर्म परीक्षा ग्रन्थ अत्युत्तम श्लोकवद्ध रचना है। इस ग्रन्थ की भापा सुन्दर और सरस है । दो माह मे इम ग्रन्थ का निर्माण कर उन्होंने सुतीक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है।
बहुविध साहित्य के अध्ययन से अमितगति की बुद्धि परिमार्जित हो चुकी थी। उन्होंने पुरातन के नाम पर रूढ मान्यताओ का कभी समर्थन नहीं किया। अपने साहित्य मे भी युक्तिसगत विचार उन्होंने प्रस्तुत किए । धार्मिक मान्यताओ के रूढ रूप पर भी सम्यक् आलोचना-प्रत्यालोचना अत्यन्त सूक्ष्मता से धर्म परीक्षा ग्रन्थ मे हुई है । अत उन्हें सुधारक आचार्यों में एव नवीन विचारो के सयोजक गिना जा मकता है।
अमितगति श्रावकाचार कृति मे बारह व्रतो एव भावनाओ का सम्यक् विवेचन हुआ है। इस विपय को प्रस्तुत करने वाली साहित्य सामग्री मे उपासकाध्ययन, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, वसुनन्दी श्रावकाचार आदि कई कृतिया विद्वानो की है। उनमे अमितगति श्रावकाचार कृति का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।
इतिहास मे अमितगति नाम के एक और आचार्य का भी उल्लेख आता है। उन्होने 'योग क्षार' कृति की रचना की। यह ग्रन्थ अध्यात्मविषयक ग्रन्थ है तथा