Book Title: Jain Dharm ke  Prabhavak Acharya
Author(s): Sanghmitrashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 416
________________ ३९४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य ज्योतिपविद्या के मेधावी आचार्य सोहनलाल जी का पाण्डित्य एव काशीराम जी का गम्भीर व्यक्तित्व आत्माराम जी मे समन्वित होकर बोल रहा था। मादडी मम्मेलन के अवसर पर विशाल श्रमण समाज उपस्थित हुआ था। सघ-एकता की दिशा में स्थानक वामी समाज की ओर से वह आयोजन किया गया या। यह समय वी०नि० २४७६ (वि० म० २००६) था। इस आयोजन में मवकी दृष्टि एफ ऐमे विश्वासपात्र नक्षम व्यक्ति को खोज रही थी जो समूचे श्रमण मघ का समर्पण निगर्वी भाव से क्षेत्र सके और सवको मन्तोपजनक नेतृत्व दे सके। एकसाथ सबकी दृष्टि अनुभवमित, वयोवृद्ध जात्माराम जी पर जा टिकी। तत्काल श्रमण मघ के नाम पर सघ एकता का प्रस्ताव पारित हुआ और उल्लाममय वातावरण में आत्माराम जी को वैशाख गुरुना नवमी के दिन श्रमण सब का नेता चुन लिया गया। यह ममस्त म्यानकवासी समाज का मनोनीत चयन था। ___ आचार्य आत्माराम जी आगम के विशिष्ट व्याख्याता थे। उनके वक्तव्य में प्रभावकता थी। लोकरजन के लिए ही उनके उपदेश नहीं होने थे, प्रवचन में शास्त्रीय आधार भी रहता था। पण्डित जवाहरलाल नेहरू, जर्मन विद्वान् रोय, डा० दुल्नर आदि विशिष्ट व्यक्ति उनके सम्पर्क मे आए थे। आचार्य आत्माराम जी साहित्यकार भी थे। दशाश्रुनस्कन्ध, अनुत्तरोपपातिकदशा, अनुयोगद्वार, दशवकालिक आदि कई मूत्रो का उन्होंने हिन्दी अनुवाद किया। उत्तराध्ययन सूत्र का हिन्दी अनुवाद एव सम्पादन जैन नमाज मे बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ। उन्होंने जैन ग्रयो का गम्भीरता में अध्ययन कर तुलनात्मक साहित्य भी लिखा । 'तत्त्वार्थ सूत्र जैनागम ममन्वय' नामक कृति तुलनात्मक दृष्टि से लिखी गयी ज्ञानवर्द्धक रचना है। "सचिन अर्धमागधी कोप ग्रथ, भगवती, ज्ञाता मत्र एव दशवकालिक इन तीनो सूत्रो का सकलन है।" कई सन्तो ने मिलकर इस कोष को तैयार किया था। इसमे आत्माराम जी का प्रमुख सहयोग था । 'जैनागमो में म्याद्वाद' उनकी एक और कृति है। इसमें म्याद्वाद से सम्बन्धिन आगम-पाठो का सुन्दर नफलन है। आगम-साहित्य के अतिरिक्त सामयिक साहित्य पर भी उनकी लेखनी चली। आठ भागो मे जैन धर्म शिक्षावली इसी ओर बढता चरण था। जैनागमो मे अष्टागयोग, जैनागमन्याय सग्रह, वीरत्युई, जीवकर्म-सवाद आदिआदि स्वनिर्मित पचासो ग्रथो का मूल्यवान् उपहार सरस्वती के चरणो मे उन्होने समर्पित किया। सियालकोट मे उन्हे 'साहित्यरत्न' की उपाधि प्राप्त हुई। जैनो के प्रमुख केन्द्र रावलपिंडी मे स्थानकवासी समाज ने उन्हे 'जैनागम-रत्नाकर' पद से भूपित किया। आचार्य आत्माराम जी की वहमुखी साहित्य-साधना एव श्रमण संघ को उनके द्वारा प्राप्त सफल नेतृत्व इतिहास की भव्य कडी है।

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