Book Title: Jain Dharm ke  Prabhavak Acharya
Author(s): Sanghmitrashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 415
________________ २५. प्रख्याति प्राप्त आचार्य आत्मारामजी ग्यातिप्राप्त आचार्य आत्माराम जी न्यानरुवामी श्रमण मघ के मनोनीत प्रथमाचार्य थे। वे पजाव के थे। उनका जन्म 'नहो' नगर-निवासी क्षत्रिय नोपडा परिवार में हुआ। जन्म समय वो नि० २४०६ (विणमान्द १९३६) भाद्रव गुप्ता द्वादशी का दिन था। उनके पिता का नाम मनमाराम एप माता का नाम परमेश्वरी था। मात्मागम जी गा गृहन्य जीवन मघों में बीता। शिशु अवस्था में माता-पिता को गो देना वाला लिए नफ्टी घडी होती है। आत्माराम जी दो वर्ष थे तभी माता का वियोग हो गया। आठ वर्ष की अवस्था मे पिता के विरह का भवफर आपात लगा। माता-पिता में निराश्रित वालक का पालन-पोषण कुछ नमय तक दादी मा ने किया। इस वर्ष की अवस्था में उनका यह सहारा भी टूट गया। कुछ दिन तमामा के यहा रहे। चाची कामरक्षण भी उन्हें मिला पर उनका मन कही नहीं लगा। सौभाग्य में एक दिन वे सतो की मन्निधि में पहुच गए। "मत्सगति कषय किन करोति पुसाम्" गावि की यह उक्ति उनके जीवन मे साकार हुई। तत्वज्ञान का प्रशिक्षण पाफर उन्होंने एक दिन सत की भूमिका मे प्रवेश पाया। श्रमण दीक्षा म्बीकरण का यह समय वी०नि०२४२६ (वि०स० १९५६) था। इस समय उनकी अवस्था बीस वर्ष की थी। "होनहार विरवान के होत चौकाने पात" उस उक्ति के अनुरूप युवक मत आत्माराम जी का व्यक्तित्व प्रभावशाली था। सत गणपतराय जी से उन्होंने दीक्षा ग्रहण की एव सतत स्वाध्यायी जीवन मे रत, आगम मन्थन करने में जागरुक आचार्य मोतीराम जी के व विद्याशिप्य बने। ज्ञानमुक्ता-मणियो को उनमे प्राप्त कर सत आत्माराम जी ने प्रकाण्ड वैदुप्य वरा। पजाब मम्मेलन के अवसर पर वी०नि० २४३८ (वि० म० १९६८) फाल्गुन माम अमृतमर मे सन्त आत्माराम जी को उपाध्याय पद से विभूपित किया गया। आगम विद्वान् सन्त मोतीराम जी के उत्तराधिकारी आचार्य सोहनलाल जी थे। उनका उत्तराधिकार आचार्य काशीराम जी को मिला। काशीराम जी के स्वर्गवास के बाद वी० नि० २४७३ (वि० स० २००३) मे महावीर जयन्ती के दिन श्रमण संघ ने मिलकर मन्त आत्माराम जी को आचार्य पद का दायित्व सौपा।

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