Book Title: Jain Dharm ke  Prabhavak Acharya
Author(s): Sanghmitrashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 429
________________ परिशिष्ट १ ४०७ ३ विचार श्रेणी ४ रत्नसचय प्रकरण, पन्न ३२ १७ समुद्र, १८ मगू और १६ भद्रगुप्त १ नन्दी स्थविगवली २. हिमवन्त , ३ नन्दी चूर्णि २० कालक १ प्रभावक चरित्र, पृ० २२ से २७ २ निशीथ चूणि, उ० १० से १६ ३ आवश्यक चूर्णि ४ बृहत् कल्प भाष्य चूणि ५ कल्पसून चूणि, पृ० ८६ ६ व्यवहार चणि, उ० १० २१ खपुट १ प्रभावक चरित्र, पृ० ३३ से ३६ २ प्रवन्धकोश, पत्राक ६ से ११ ३ निशीय भाष्य चूणि २२ पादलिप्त १ प्रभावक चरित्र, पनाक २८ २ प्रवन्धकोश, पनाक ११ से १४ ३ प्रवन्ध चिन्तामणि, पनाक ११६ ४ प्राकृत साहित्य का इतिहास, पनाक ३७६, ३७७ २३ वज्र स्वामी १ आवश्यक चूणि, पनाक ३६० से ३६६ २ प्रभावक चरित्र, पनाक ३ से ८ तक ३ परिशिष्ट पर्व, सर्ग १२ ४ उपदेशमाला विशेप वृत्ति, पनाक २०६ से २२० ५ आवश्यक मलयवृत्ति, पनाक ३८३ से ३६१ २४ कुन्दकुन्द १ प्राकृत साहित्य का इतिहास, पनाक २६७ ३०१

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