Book Title: Jain Dharm ke  Prabhavak Acharya
Author(s): Sanghmitrashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 437
________________ ९३ हीरविजय - ६४ विजयसेन ९५ विजयदेव - ९६ जिनचन्द्र ( अकबर - प्रतिबोधक) ६७ ऋषिलव ८ धर्मसिंह ६६ धर्मदास -- १०० रघुनाथ - १०१ जयमल्ल - १०२ भिक्षु - १०३ जय १०४ विजयानन्द - नवीन युग १ तपागच्छ श्रमण वशवृक्ष ( वशवृक्ष विभाग), पृ० १३ २ तपागच्छ श्रमण वशवृक्ष परिशिष्ट १ ४१५ ( विवेचन विभाग), पृ० १२ ३ पट्टावली समुच्चय ( सूरि परम्परा ), पृ० १४६-१४७ १ पट्टावली समुच्च ( सूरि परम्परा ) पृ० १४६-१४७ २ तपागच्छ श्रमण वशवृक्ष (विवेचन विभाग), पृ० १२ १ युग - प्रधान श्री जिनचन्द्र सूरि १ ऋषि सम्प्रदाय का इतिहास, पृ० १० से १ मुनिश्री हजारीमल जी स्मृतिग्रन्थ १ मुनिश्री हजारीमल जी स्मृतिग्रन्थ १ मुनिश्री हजारीमल जी स्मृतिग्रन्थ १ जयवाणी अन्तर्दर्शन पृ० २० से २४ तक २ तेरापथ का इतिहास १ तेरापथ का इतिहास २ भिक्षु स्मृतिग्रन्थ १ तेरापथ का इतिहास २ भिक्षु स्मृतिग्रन्थ १ तपागच्छ श्रवण वश वृक्ष ( वशवृक्ष विभाग ), पृ० ८ २ विवेचन विभाग, पृ० १४

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