Book Title: Jain Dharm ke  Prabhavak Acharya
Author(s): Sanghmitrashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 391
________________ मगल प्रभात आचार्य भिक्षु ३६६ चोर मिले उजाड मे, करे झपट झपट में झपट । ज्यू मिश्र परूपे त्यारी बात में कपट कपट में कपट ।। वाजर सेत गवै जरे बूट बूट मे बूट । ज्यू मिश्र परूपे त्यारी बात मे, झूठ झूठ मे झूठ ।। आचार्य भिक्षु की साहित्य-रचना का प्रमुख विषय शुद्ध आचार परम्परा का प्रतिपादन, तत्त्व दर्शन का विश्लेषण एव धर्म सघ की मौलिक मर्यादाओ का निरूपण था। उनकी रचनाओ मे प्राचीन वैराग्यमय आख्यान भी निबद्ध है, जो व्यक्ति को अध्यात्मवोध प्रदान कर जीवनकाव्य के मर्म को समझाते हैं। आचार्य भिक्षु के क्रान्त विचार उनकी पद्यावलियो मे स्पष्ट रूप से उभरे है। आचार्य भिक्षु जिन वाणी के प्रति अटूट आस्थावान् थे। आगम के प्रत्येक विधान पर उनका सर्वस्व वलिदान था। एक बार किमी व्यक्ति ने उनसे कहा"आपकी बुद्धि अत्यन्त प्रखर है। गृहस्य जीवन में रहकर आप विशाल राज्य के सचालक बन सकते थे।" उसके उत्तर मे आचार्य भिक्षु तत्काल बोले बुद्धि वाहि सराहिए, जो सेवे जिनधर्म । वा बुद्धि किण काम री, जो पडिया वान्धे कर्म । "मैं उसी बुद्धि की प्रशसा करता हू जो जिन-धर्म का सेवन करे। मुझे उम वुद्धि से कोई प्रयोजन नही है जिससे कर्मों का बन्धन होता है।' आचार्य भिक्षु के साहित्य ने माध्वाचार की शिथिलता, शिष्यो की जागीरदारी प्रथा पर तीव्र प्रहार किया है। आचार्य भिक्षु का सर्वोत्कृष्ट मौलिक कार्य नए मूल्यो की स्थापना है। अहिंसा व दान-दया की व्याख्या उनकी सर्वया वैज्ञानिक थी। ___ आचार्य भिक्षु को अहिंसा सार्वभौमिक क्षमता पर आधारित थी। बडो के लिए छोटो की हिंसा व पचेन्द्रिय जीवो की सुरक्षा के लिए एकेन्द्रिय प्राणियो के प्राणो का हनन आचार्य भिक्षु की दृष्टि में जिनशासनानुमोनित नहीं था। अध्यात्म व व्यवहार की भूमिका भी उनकी भिन्न थी। उन्होंने कभी और किमी प्रसग पर दोनो को एक तुला से तोलने का प्रयत्न नहीं किया। उनके अभिमन से व्यवहार व अध्यात्म को सर्वत्र एक कर देना, सममूल्य के कारण घृत व तम्बाजू को ममिधित कर देने जैसा है। ___ दान-दया के विपय मे भी आचार्य भिक्षु ने लौकिक एव लोकोत्तर की भेदरेगा प्रस्तुत कर जैन समाज में प्रचलित मान्यता के ममक्ष नया चिन्तन प्रस्तुत किया। उस समय सामाजिक सम्मान का माप दण्ड दान-दया पर वनलित पा। स्वर्गोपलब्धि और पुण्योपलब्धि की मान्यताए भी दान-दया के साथ नम्बद्ध

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