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दिव्य विभूति देवनन्दी (पूज्यपाद) २१६ समाधि तन्त्र की प्रस्तावना मे श्रवणबेलगोल शिलालेखो के आधार पर तथा स्वय पूज्यपाद द्वारा रचित जैनेन्द्र व्याकरण मे समागत 'चतुष्टय समन्तभद्रस्य' इस सूत्र (५-४-१६८) का प्रमाण देकर पूज्यपाद देवनन्दी का समय आचार्य समन्तभद्र के बाद प्रमाणित किया है।
आधार-स्थल
१ यो देवनन्दि प्रथमाभिधानो बुड्या महत्या स जिनेन्द्रवुद्धि । श्री पूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजित पादयुग यदीयम् ।।
(श्रवणवेलगोल, शि० न० ४०-६४) २ श्रीपूज्यपादमुनिरप्रतिमोपद्धिीयाद्विदेहजिनदर्शनपूतगात्र । यत्पादघोतजलसस्पर्शप्रभावान कालायस किल तदा कन कीचकार ।।
(श्रवणवेलगोल, शि.न. १०८-२५८), ३ न्यास जैनेन्द्रसज्ञ सकलबुधनुत पाणिनीयस्य भूयो,
न्यास शब्दावतार मनुजततिहित वैद्यशास्त्र च कृत्वा । यस्तत्वार्थस्य टीका व्यरचयदिह ता भात्यसौ पूज्यपाद, स्वामी भूपालवध स्वपरहितवच पूर्णदृग्बोधवृत्त ॥
(नगर ताल्लुक शि० न०४६) ४ सिरि पुज्जपादसीसो दाविडसघस्य कारगो दुट्ठो।
णमेण वज्जणदी पाहडवेदी महासत्तो ॥२४॥ पचसर छवीसे विक्कमरायस्म मरणपत्तस्म ।। दुक्खिणमहुराजा दो दाविडसपो महामोहो ॥२८॥
(दर्शन सार)