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ध्यानयोगी आचार्य दुर्वलिका पुष्यमित्र १६७ दोनो शिप्यो की क्षमता को उदाहरण की भाषा मे समझाते हुए आर्य रक्षित वोले, "मथुरा देश की अनाथ कृपण महिला अपने हाथ से कपास को बीनकर वस्त्र बनाती है और उनके विकय से अपनी आजीविका चलाती है। यह महिला वर्पा, शिशिर और हेमन्त ऋतु मे भी श्रमण वस्त्र पुष्यमित्र के उपस्थित होने पर उसे प्रमुदितमना वस्त्र प्रदान करने हेतु प्रस्तुत हो जाती है। ___"अवन्ति प्रदेश की कृपण गभिणी निकट प्रमवा महिला के लिए उसके पति ने याचनापूर्वक छह महीनो के प्रयत्नो मे घृत मचय किया। उस घृत को कृपण महिला अपने क्षघातं पति के द्वारा माग किए जाने पर भी प्रदान नही करती पर घृतपुप्यमित्र के उपस्थित होने पर ज्येष्ठ और जापाढ मास में भी वह घृत उमी कृपण महिला द्वारा द्वारस्य मुनि को सहर्ष प्रदान कर दिया जाता है।' ___ "लब्धिघर इन ममयं मुनियों के होते हुए भी मध में पौष्टिक भोजन के अभाव की करपना भ्रान्ति मात्र है । शिष्य दुर्बलिका पुष्यमित्र प्रतिदिन गरिष्ठ एव घृतासिक्त भोजन म्वेच्छापूर्वक करता है। प्रस्तुत विषय की विश्वसनीयता प्राप्त करने के लिए इन्हें अपने म्यान पर रखकर परीक्षा ले मकते है।" __ श्रमण दुवंलिका पुप्यमित्र गुरु के आदेश से उनके साथ चले गये। बौद्ध उपामको ने अपने स्थान पर शिष्य दुर्वलिका पुप्यमित्र को ध्यान साधना और आहार विधि का ममग्रता से कई दिनो तक अवलोकन किया। स्निग्ध और अतिस्निग्ध भोजन को ग्रहण करने पर भी कृशकाय मुनि दुवतिका पुष्यमित्र का शरीर दिन-प्रतिदिन अधिक कृश वनता गया। भसम मे प्रक्षिप्त घृत की भाति रस परिणत जाहार उनके शरीर मे जरम परिणत गिद्व होता। रमोत्पत्ति न होने का कारण उनके गरीर मे पाचन शक्ति की दुर्बलता नहीं पर स्वाध्याय, ध्यानरत आर्य दुर्वलिका पुष्यमित्र द्वारा अनास्वाद वृत्ति से भोजन का ग्रहण था । वौद्ध उपासको को दुबंलिका पुष्यमित्र की माधना वृत्ति से अन्त तोप हुआ। ____ आरक्षित के घृत पुष्यमित्र और वस्त्र पुप्यमिन के अतिरिक्त चार और प्रमुख शिष्य थे । दुर्वलिका पुष्यमित्र, फरगुरक्षित, विन्ध्य, गोप्ठामाहिल ।' दुर्वलिका पुष्यमित्र विनय, धृति आदि गुणो से सम्पन्न या। आर्य रक्षित की विगेप कृपा इन पर थी। ___ मेघावी फरगुरक्षित आर्यरक्षित के लघु सहोदर थे। गोप्ठामाहिल तार्किकशिरोमणि एव वादजयी मुनि थे। घृत पुष्यमित्र एव वस्त्र पुप्यमिन्न भी श्रमण परिषद् के विशेष अलकारभूत थे। ___ एक बार श्रमण परिवार परिवृत आर्यरक्षित दशपुर मे विहरण कर रहे थे। मथुरा मे अक्रियावादी अपना प्रबल प्रभुत्व स्थापित करने लगे थे। आर्यरक्षित ने उनके प्रभाव को प्रतिहत कर देने के लिए शास्त्रार्थ-कुशल गोठामाहिल को वहा भेजा था। उनके वाक्-कौशल का अमित प्रभाव मथुरा के नागरिको पर हुआ।