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१६८ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
श्रावको ने वादजयी मुनि के पावस की विशेष माग आचार्य देव के सामने प्रस्तुत की। जैन गासन की विशेप प्रभावना की सम्भावना का चिन्तन कर आर्यरक्षित न गोष्ठामाहिल को मथुरा मे ही चातुर्मामिक स्थिति सम्पन्न करने का आदेश दिया।
आर्यरक्षित का यह चातुर्मास दरापुर मे था। इस चातुर्मास मे उनके सामने भावी उत्तराधिकारी की नियुक्ति का प्रश्न उपस्थित हुआ। आचार्य पद जैसे उच्चतम पद के लिए आर्यरक्षित ने दुर्वलिका पुष्यमित्र को योग्य समझा था। उस समय का श्रमण वर्ग भी इस विपय मे अत्यधिक जागरूक या। उन्होने मेधावी मुनि फल्गुरक्षित और वादजयी मुनि गोष्ठामाहिल का नाम प्रस्तुत किया।
जाचार्य का दायित्व श्रमण संघ को अधिक से अधिक तोप प्रदान करना है। अपने इस दायित्व की भूमिका पर श्रमणो के मन को समाहित करने के लिए तीन कलशो का दृष्टान्त देते हुए आर्यरक्षित प्रश्न की भाषा मे बोले, "सुविज्ञ श्रमणो। कल्पना करो एक कलश उडद धान्य से, दूसरा कलश तेल मे, तीमरा कतश घृत से पूर्ण भरा हुआ है। तीनो कलशो को उलट देने का परिणाम क्या होगा?" संघ हितैषी श्रमणो ने नम्र होकर कहा, "पहला कलश पूर्ण रिक्त हो जायेगा। दूसरे कलश मे तेल की वूदे अल्प माना मे एव तीसरे कलश मे घृन की बूदें अत्यधिक परिमाण में अवशिष्ट रह जाएगी।"
दृष्टान्त को शिप्यो पर घटित करते हए आर्यरक्षित मधुर एव गम्भीर शब्दों मे समझाने लगे, "शिष्यो । उडद धान्य प्रथम कलश की भाति में अपना सम्पूर्ण ज्ञान दुर्वलिका पुण्यमित्र मे निहित कर चुका है। फल्गुरक्षित में द्वितीय कलश के समान एव गोष्ठामाहिल मे तृतीय कलश के समान अल्प-अल्पतर मात्रा में मैं ज्ञान रागि को स्थापित कर पाया ह ।"
मुविनीत, थद्धानिष्ठ, चिन्तनशील श्रमणो ने आर्यरक्षित के विचारो की गह ई नो समझा। उनके मन को समाधान मिला। ___ आर्यरक्षित की मूझ-बूझ से निर्विरोध वातावरण का निर्माण हुआ। प्राचार्य पद की नियुक्ति के लिए सर्वथा समुचित अवसर उपस्थित हो गया था। जनुकूल परिस्थिति का लाभ उठाते हुए आयंरक्षित ने शिप्य समुदाय को मनोधित करत हुए कहा, "शिप्यो। मेरे द्वारा प्रदत्त मन्त्रागम और अर्थागम का जाता दुबलिका पुष्यमित्र को मैं आचार्य पद पर स्थापित कर रहा है।" में सघ को आत्रार्ग के निर्विरोध निर्णय मे प्रसन्नता हुई।
दुर्वलिका पुप्यमित्र को आरक्षित ने प्रशिक्षण दिया-"आर्य । मने जग फन्गुरक्षित और गोष्ठामाहिल के माय ममुचित व्यवहार किया है तुम भी इन्हें इसी प्रकार सम्मान मे रखना।" थमणो को भी आचार्य के प्रति काव्य-धोध गा पय-दर्शन दिया। मगन मर को समुचित शिक्षाए देकर आयंरक्षित गण-चित्ताग मुक्त बने । उनका उमी वर्प स्वर्गवास हो गया। आर्य दुवलिका पुष्पमित्र यो