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जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
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(४) पहवाहन |
शिष्य प्रियग्रन्थ से मध्यम शाखा का, शिष्य विद्याधर गोपाल से विद्याधर शाखा का जन्म हुआ ।"
आर्य इन्द्रदिन के शिष्य आर्य दिन्न एव आर्य दिन्न के शिष्य आर्य शान्ति श्रेणिक सिंहगिरि थे । आर्य शान्ति श्रेणिक से उच्चनागरी शाखा का विकास हुआ । उच्चनागरी शाखा का सम्बन्ध उच्चनगर से भी बताया जाता है ।
युगप्रधान आचार्य सुहस्ती के १२ प्रमुख शिष्यो मे से आर्य सुस्थित एक थे । उन्होने ६५ वर्ष की सयम पर्याय मे ४८ वर्ष तक सघ का नेतृत्व किया। कुमारगिरि पर्वत पर ε६ वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वाध्यायप्रिय आचार्य सुस्थित वी० नि० ३३९ (वि० पू० १३१ ) मे स्वर्गगामी बने ।
आधार-स्थल
१ थेराण सुट्टियसुपडिबुद्धाण कोडियकाकदाण वग्धावच्चसगोत्ताण इमे पच थेरा अतेवासी अहावच्चा अभिन्नाया होत्या, त जहा - येरे अज्जइददिन्ने, थेरे - पियगथे, थेरे विज्जाहरगोवाले कासवगोत्तेण, थेरे इसिदत्ते, थेरे अरहदत्ते ।
( कल्पसूत्र स्थविरावलि २१७, स० पुण्मविजयजी )
२ सुट्टिय सुपडिबुद्ध, अज्जे दुन्ने वि ते नमसामि । भिक्खुराय - कलिंगा हिवेण सम्माणिए जिट्टे ॥१०॥
(हिमवत स्थविरावली)
३ प्रीति सृजन्ती पुरुषोत्तमाना दुग्धाम्बुराशेरिव पद्मवासा । हृदा जिन विभ्रत आविरासीत्तत्सू रियुग्मादिह "कोटिकाख्या ॥४४॥
( पट्टावली समु०, श्रीमहावीर पट्ट परम्परा, पृ० १२४) ४ तजहा उच्चानागरी विज्जाहरी य वइरी य मज्भिमिल्ला य । कोडियगणस्स एया, हवति चत्तारि साहाओ से कि त कुलाई ? तजहा - पढमेत्य वभलिज्ज वितिय नामेण वच्छ लिज्ज तु । ततिय पुर्ण वाणिज्ज चउत्थय पन्नवाहणय ।
(कल्प सूत्र स्थविरावली २१६ ) -५ येरेहितो ण पियगथेहितो एत्थ ण मज्झिमा साहा निग्गया, थेरेहितो ण विज्जाहरगोवालेहितो तत्थ ण विज्जाहरी माहा निग्गया ।
(कल्प सूत्र स्थविरावली २१७) ६ थेरस्स ण अज्जइददिन्नस्स कासवगोत्तस्स अज्जदिन्नेथेरे येरेहितो ण अज्जसतिसे जिए - हितो ण माढरसगोत्तेहितो एत्य ण उच्चानागरी साहा निग्गया ।
(कल्प सूत्र स्थविरावली २१८ )