Book Title: Jain Dharm ke Sampraday
Author(s): Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 11
________________ - 10 - चतुर्थ अध्याय : विभिन्न सम्प्रदायों को वर्शन सम्बन्धी मान्यताएं 121-154 दर्शन शब्द का अर्थ-१२१, तत्त्व की संख्या का प्रश्न-१२२, काल को स्वतन्त्र द्रव्य मानने का प्रश्न-१२५, पुद्गल के बन्ध के नियम सम्बन्धी मतभेद-१२६, जीव-१२८, जीव के भेद 130, स एवं स्थावर के वर्गीकरण का प्रश्न-१३२, जगत की अवधारणा सम्बन्धी मतभेद-१३४, कर्म सिद्धान्त सबंधी. मतभेद-१३६, परमात्मा-१३९, मोक्ष-१४०, स्त्री मुक्ति का प्रश्न-१४२, केवलो भुक्ति को अवधारणा संबंधी मतभेद-१४९, केवली में ज्ञान और दर्शन के भेद-अभेद का प्रश्न-१५२ पंचम अध्याय : विभिन्न सम्प्रदायों को श्रमणाचार सम्बन्धी मान्यताएं 155-195. आचार के भेद-१५५, श्रमण का अर्थ-१५५, श्रमण दोक्षा-१५६ श्वेताम्बर परम्परानुसार श्रमण के मूलगुण-१५९, दिगम्बर परम्परानुसार श्रमण के मूलगुण-१६०, श्रमण के मूलगुणों की समीक्षा-१७४, भिक्षाचर्या-१७४, आहार-१७७, विहार-१८०, वर्षावास-१८१, उपकरण-१८४, वस्त्र-१८५, पात्र-१८६, रजोहरण-१८७, मुखवस्त्रिका-१८८, प्रतिलेखना-१८९, प्रतिक्रमण 190, समाधिमरण-१९२, षष्ठम अध्याय : विभिन्न सम्प्रदायों की श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताएं 196-227 श्रावक का अर्थ-१९७, श्रावक की पहचान-१९७, श्रावकाचार१९८, आगमों में श्रावकाचार-१९८, अणुव्रत-१९९, पाँच अणुव्रत एवं अतिचार-२००, तीन गुणव्रत एवं अतिचार-२०८, चार शिक्षाव्रत एवं अतिचार-२१३, सल्लेखना-२२१, प्रति माएं-२२३, पूजाविधि-२२४, सप्तम अध्याय : उपसंहार 228-235 सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 236-206

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