Book Title: Jain Dharm Mimansa 02
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 7
________________ - १७० १७२ १७५ १७८ १८४ १८५ विविध केवली संघ में केवली का स्थान सर्वज्ञत्व की जाँच महावीर और गोशाल सर्वज्ञम्मन्य सर्व विद्या-प्रभुत्व सर्वज्ञ चर्चा का उपसंहार पाँचवाँ अध्याय [ज्ञान के भेद] प्रचलित मान्यताएँ दिवाकरजी का मतभेद अन्य मतभेद श्रीधवल का मत शंकाएं उपयोगों का वास्तविक स्वरूप दर्शन के भेद बान के भेद मतिश्रुत का स्वरूप मतभेद और आलोचना रुतबान के भेद अंगप्रविष्ट आचारांग सूत्रकृतांग १९२ १९७ २०२ २१० २१३ २२३ २२६ २३७ २४९ २९५ ३१२ ३१२

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