Book Title: Jain Dharm Ka Jivan Sandesh Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 6
________________ पेड़-पौधों द्वारा उत्सर्जित ऑक्सीजन हमारे (मानव और पशु-पक्षियों तथा कीट-पतंगों के लिए) जीवन-धारण के लिए अनिवार्य तत्व है। अर्थात् एक-दूसरे का विष तत्व, जहरीला श्वास एक-दूसरे के लिए जीवनदायी बनता है। इसी प्रकार जल वनस्पति जगत के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है तो वनस्पति जगत-वृक्ष जल को आकर्षित करके भूमि को जीवित मृदा का रूप देकर भूमि को हरियाली से संपन्न करते हैं और जल एवं वायु तो समस्त प्राणीमात्र के लिए जीवन हैं ही। जैन धर्म की इस वैज्ञानिक अवधारणा को आचार्य उमास्वाति ने तत्वार्थ सूत्र के एक सूत्र में प्रगट किया है परस्परोपग्रहो जीवानाम् । जीव परस्पर एक-दूसरे का उपकार करते हैं, सहायता देते हैं, जीवन निर्वाह में, सुख- पूर्वक जीवन जीने में सहभागी सहयोगी बनते हैं । विश्व में मानव ही विशिष्ट मेधा का धनी है, विवेकवान है। साथ ही उसका शरीर भी सभी प्रकार से सक्षम है, उसे वचन संपदा भीPage Navigation
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