Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 15
________________ WRIRRIGINA पांच गुण निष्पन्न नाम भी उपलब्ध होते हैं, यथा - वृषभ, प्रथम राजा, प्रथम भिक्षाचर, प्रथम जिन, प्रथम तीर्थंकर। * वंश :- यौगलिक युग में मानव समाज किसी कुल, जाति या वंश के विभाग से विभक्त नहीं था। अतः ऋषभ का भी कोई वंश (जाति) नहीं था। जब ऋषभ एक वर्ष के हो गये तो एक दिन वे अपने पिता की गोद में बैठे हुए बाल - क्रीडा कर रहे थे तभी इन्द्र एक थाल में विविध खाद्य वस्तुएं सजाकर लाएं। यह देखकर ऋषभकमार गुडालिया चलकर इन्द्र के पास पहुंचे और सर्वप्रथम इक्षु (गन्ने) का टुकडा उठाकर चूसने का यत्न किया। बालक ऋषभ के इस प्रयत्न को ध्यान में रखकर इन्द्र ने कहा - बालक को इक्षु प्रिय हैं अतः आगे इस वंश का नाम इक्ष्वाकु वंश होगा। इक्ष्वाकु वंश की स्थापना के साथ ही वंश परंपरा का प्रारंभ हुआ। अन्य तीर्थंकर बाल्यावस्था में अंगूठे में संचारित अमृत पान करते हैं, बाद अग्नि पक्व आहार करते हैं, परंतु ऋषभ देव तो देवकुरु - उत्तरकुरुक्षेत्र से देवों द्वारा लाये हुए कल्पवृक्षों के फल का आहार करते थे। * भगवान का विवाह प्रसंग :- यौगलिक युग में विवाह पद्धति का प्रचलन नहीं था। जो स्त्री-पुरुष के रुप में युगल पैदा होता, वे ही पति - पत्नि के रुप में संबंध स्थापित करते। बहु-पत्नी प्रथा का प्रचलन नहीं था। सर्वप्रथम ऋषभकुमार का विवाह दो कन्याओं के साथ किया गया। दो कन्याओं में एक उसके साथ जन्मी हुई सुनन्दा थी। दूसरी अनाथ कन्या सुमंगला थी। अब तक अकाल मृत्यु नहीं होती थी पर अब धीरे - धीरे काल का प्रभाव हुआ, एक दुर्घटना घटी। एक जोडा था, उसमें पुत्र मर गया, पुत्री बच गई। थोडे समय बाद उसके माता - पिता मर गये। नाभिकुलकर ने उस कन्या सुमंगला को ऋषभ की पत्नी के रुप में स्वीकार कर लिया। यही से विवाह पद्धति का प्रारंभ हुआ। इंद्र - इंद्राणी द्वारा रसम करवाई गई। * भगवान के संतान :- यौगलिक युग में हर युगल के जीवन में एक बार ही संतानोत्पत्ति होती थी और वह भी युगल के रुप में । परंतु ऋषभदेव को सौ पुत्र और दो पुत्रियां हुई। सुनन्दा के तो एक ही युगल पैदा हुआ - बाहुबली और सुंदरी। सुमंगला के पचास युगल जन्मे। जिनमें प्रथम युगल में भरत और ब्राह्मी का जन्म हुआ, शेष उनपचास युगलों में पुत्रों के रुप पैदा हुए। इसके बाद अन्य युगल दम्पत्तियों के भी अनेक पुत्र और पुत्रियां होने लगे। * भगवान का राज्याभिषेक :- जब काल हीनातिहीन आने लगा तब कल्पवृक्षों की महिमा कम हो गई। युगलिये परस्पर लडाई करने लगे। “हकार - मकार - धिक्कार" इन तीनों दंड नीति का उल्लंघन करने लगे। नाभिकुलकर तो वृद्ध हो गये, युगलिये ऋषभकुमार के पास अपनी शिकायत करने लगे कि “हमारा न्याय करो'' प्रभु ने कहा :- लोगों में जो मर्यादा का उल्लंघन करते हैं, उन्हें दंड देनेवाला राजा होता है। मैं राजा नहीं हूँ। युगलियों ने कहा “ आप ही हमारे राजा हो" तब प्रभु ने बताया कि तुम नाभि कुलकर . . . . . . .... ... ....aaa a ar . . . . RRRRRRRRRR. aliediofoldinintention RRRRRRRRRRRRereke.eeeeeeeeeeeeee...] Farpersorrowatatusdaily 11 ea. . . . . . . . . . . . worwajaneliarary.org

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