Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ 7. छास :- कई परिवारों में खाने के बाद छास पीते हैं। कच्ची छास के साथ कठोल का संयोग होने से बेइन्द्रिय कीडे उत्पन्न होते हैं। दोष से बचने की इच्छा वाले नर - नारी सबेरे छास को अच्छी तरह गरम करके फिर दोपहर में भोजन के समय उपयोग करते हैं। यह रास्ता सफल और सेफ है। यदि कभी कच्ची छास पीने में आये तो हाथ मुंह बिल्कुल साफ करना चाहिए। कठोल का स्पर्श न हो इस तरह अलग से छास पीकर उस छास की ग्लास को अलग से साफ करके रखना चाहिए। कठोल के झूठे के साथ यदि यह ग्लास का संयोग हो जाए तो हिंसा संभव है। इसलिए ये ग्लास अलग से साफ करके पानी पीना चाहिए। जिससे कभी दोष लगने का संभव न रहे। पेट में अंदर जा ल मिक्स हो तो द्विदल का दोष नहीं लगता। क्योंकि शरीर में तो एक जबरदस्त अणुभट्टी चालू है। दूसरी बात यह है कि अंदर दाखिल होने के साथ ही तुरंत उसका रुपांतर शुरु हो जाता है। इस कारण पेट में कोई दोष नहीं लगता। थाली, कटोरी, हाथ, और मूंह साफ होने चाहिए। 8. कच्चा दूध :- कच्चे दूध को उपयोग में लाने का प्रसंग बहुत कम आता है। घर में दूध की तपेली खुल्ली रखने से कभी उसमें कठोल, दाल या मेथी भाजी की पत्ती गिर जाने की संभावना है। इस तरह कच्चे दध के साथ कठोल का समागम होने पर जीव उत्पन्न होंगे इसलिए कच्चे दूध को बराबर ढक कर संभालकर रखना चाहिए। * दही की काल मर्यादा :- दही के लिए साइन्स कहता है कि दूध के साथ जावन डालने के साथ ही उसमें बैक्टेरिया उत्पन्न हो जाते हैं। जैन दर्शन ऐसी मान्यता में सम्मत नहीं है। ऐसा हो तो बेइन्द्रिय जीवों की हिंसा से निर्मित दहीं कोई भी भोजन उपयोग में नहीं ले सकता। दहीं का उपयोग तो भगवान के आनंद कामदेव श्रावकों के समय में भी होता था और आज भी है। विज्ञान जिसको बैक्टेरिया कहता है, उसे हम पौद्गलिक परावर्तन कहते हैं। एक द्रव्य में । दूसरा द्रव्य मिक्स होने पर रासायनिक परिवर्तन होता है। ऐसे परिवर्तन के समय दूध के कटोरे में भारी तूफान उठता है, इसको जीव मानने की जरुरत नहीं। यह तूफान जीवकृत नहीं परंतु केमिकलकृत मानना योग्य है। जैन दर्शन ने दहीं के लिए काल मर्यादा निश्चित की हैं दहीं जमने के बाद दो रात रहे तो अभक्ष्य बन जाता है। इसलिए दहीं जमने के बाद कभी भी दो रात पूरी होने देना नहीं। दो रात पूरी होने ही दहीं खत्म कर देना चाहिए। दो रात पूर्ण होने के पूर्व दहीं बिलाकर छास बना लेंगे तो वह छास फिर दो दिन काम में आ सकती है। अब इस छास को दो रात्रि पूर्ण होने के पहले ही पराठा, पूडी बना देंगे तो वह दो दिन तक चल सकती है। अब ये पूडी या पराठा दो रात्रि पूरे होने के पूर्व ही खाखरा जैसे सेक ले तो अब आगे 15 दिन तक चल सकता है। अब 15 दिन पूरे होने के पहले ही खाखरों का चूरा करके चिवडा बना देने पर वह पुनः 15 दिन तक चलेगा। इस तरह पूरे 36 दिन तक दहीं की मर्यादा को खींच सकते हैं। परंतु आप ऐसा धंधा मत करना। * चावल की काल मर्यादा :- जिस प्रकार दहीं की 16 प्रहर की काल मर्यादा बताई है उसी प्रकार चावल बने तब से आठ प्रहर का समय गिना जाता है। भात को छास में मिला दें तो दूसरे दिन रख सकते हैं। छास में मिला हुआ भात बासी नहीं होता परंतु छास में दाना दाना अलग होना चाहिए और मिलाने के बाद पूरा अंदर डूब होना चाहिए। ऊपर चार अंगुली जितनी छास तैरनी चाहिए। इस तरह छास छींटा हुआ नहीं परंतु छास में डूबा हुआ चावल दूसरे दिन उपयोग में ले सकते हैं। कुछ बहनें छास में भात भीगाने के बदले दूध में जावन डालकर भात मिला देती है। ये टेकनीक बिल्कुल झूठी है। ऐसा मिला हुआ चावल सुबह में नहीं चल सकता। * दही उपयोग में लेते समय विशेष सावधानी :- दहीं, छास, दूध जब गरम करें, तब खास ध्यान रखना कि वह अच्छी तरह से गरम होना चाहिए। अंदर से बुड - बुड आवाज न आये तब तक एकदम कडक रीती से गरम करना चाहिए। कई बहनें मात्र बर्तन गरम करके नीचे उतार लेती है। यह ठीक नहीं है। अंगुली जलें उतना गरम होना चहिए। du RecenterRIRAMROmeeeeeeeeeeeeeeeeeee. winilafaintensitiyaight | 48

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146