Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 58
________________ मदिरा मदिरापान कर नाली में गिरा * मांस शरीर का मृत भाग है, शरीर से अलग होती ही वह सड़ने लगता है। तत्काल उसमें उसी वर्ण के बारीक जंतु (बैक्टेरिया) उत्पन्न हो जाते हैं तथा उसमें अनंत निगोद (फंगस) के जीव उत्पन्न हो जाते हैं। * मांसाहारी मनुष्य क्षणिक सुख के लिए परलोक के, नरक - निगोद की अनंत दुःख वेदना भोगने वाला बनता है। * मांस दिखने में दुर्गन्धयुक्त, मलिन और रक्त के जमे हुए मलरुप होने से सर्वथा त्याज्य पदार्थ है। VI. मदिरा त्याग :- मदिरा अर्थात् मद्य, सुरा, कादम्बरी, विस्की, दारु, शराब, बीयर आदि। इन तमाम प्रकार की मदिरा में उसी रंग के बेइन्द्रिय और सूक्ष्म रसज त्रस जीव सतत उत्पन्न होते हैं और मरते हैं। अनेक वर्षों तक अंगूर वगैरह को सडाते हैं। उसमें कीडें उत्पन्न होते हैं। कीडों को मसलकर उसका रस निकाला जाता है जो महाहिंसा का कार्य है। दुर्गन्ध के साथ नए त्रस जीव भी उत्पन्न होते हैं। इन सब पापों के कारण मदिरा की गणना अभक्ष्य में होती है। * मदिरापन से होनेवाली हानियाँ :- श्री हेमचन्दाचार्य ने योगशास्त्र में मदिरापन की हानियों का वर्णन किया है। * मदिरा पान करनेवाले की बुद्धि उससे दूर चली जाती WLOD1000000 है। ISADANAAMIO * मदिरापान से पराधीन चित्तवाला मनुष्य अपना BAR विवेक, संयम, ज्ञान, सत्य, शौर्य, दया और क्षमा का हनन कर देता है। ____* मद्यपान से कांती, कीर्ति, बुद्धि लक्ष्मी का नाश हो जाता है। * मद्यपान शरीर को शिथील, इन्द्रियों को निर्बल बनाता है और मुर्छा लाता है। * मदिरा से चंचल चित्तवाला व्यक्ति स्व पर की पहचान में असमर्थ होता है। * शराबी अपने परिवार के भरण पोषण के लिए उचित व्यय नही कर पाता। उसका अधिक खर्च मदिरा पर हो जाता है। * मद्यपान करने वालो का मस्तिष्क अनियंत्रि होने के कारण मुनष्य अनाचारी बन जाता है। VII. मध त्याग :- मध अर्थात् शहद। भमरी, लाल भमरीऔर मधुमक्खी - यह तीनों जंतु अपनी लार से मध बनाते हैं। मधुमक्खियां पुष्पों पर बैठकर फूलों का रस चूसती है। यह रस उनके शरीर में पच जाता है। रस पचने के बाद मधुमक्खियों के शरीर में से त्यागी हुई विष्ठा का दूसरा नाम शहद है। यह विष्ठा मधुमक्खियां कभी लार स्वरुप में मुख से बहाती है। * मध बनाने कि हिंसक प्रक्रिया :- मधुमक्खी में रहा हुआ शहद इतना मीठा और चिकना होता है कि दूसरे असंख्य कीडे उसमें पैदा हो जाते हैं। शहद पीने के लिए जब मधपडे को गिराया जाता है और जब उसे पूरा निचोडकर शहद छानने में आता है । उसके साथ - साथ अंदर पडे हुए सैंकडों सफद कीडे और मधुमक्खियों के अंडे और छोटे छोटे बच्चे भी निचोड दिए जाते हैं। इस हिंसा व विकृति के कारण मध अभक्ष्य माना गया है। * मध भक्षण से अलाभ :- * योगशास्त्र में कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने पूछा है “अरे ! मानव के मुंह से निकली लार को कोई चाटने के लिए तैयार नहीं होता तो मधुमक्खी जैसे क्षुद्र जंतु की लार चाटने कौन तैयार मृता मधुमक्खिया मधु detaudailalitation setely www.jane arty.org 531

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