Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 68
________________ * विष के प्रकार 1. खनिज (रसायनिक) 2. प्राणिज 3. वनस्पतिज 4. मिश्रण किए गए रसायन, तालपुट आदि मिश्रण विष है। अभक्ष्य अर्थात् अनंत जीवों की हिंसावाला, त्रस जीवों की हिंसावाला अयोग्य भोजन । शरीर, मन व आत्मा का अहित करनेवाला भोजन | शरीर निर्वाह के लिए अनुपयोगी भोजन । दुष्ट वृत्तियों को उत्पन्न करनेवाला भोजन । लोक - परलोक को बिगाडनेवाला भोजन । : विष से सत्व निकालकर अथवा अन्य औषधि प्रयोग से तैयार श्री सर्वज्ञ भगवंत ने 22 प्रकार के अभक्ष्यों को निषेध कहा हैं वह वस्तुतः युक्तियुक्त है। जिन दोषों के कारण इन पदार्थों को अभक्ष्य कहा गया है, वे निम्नानुसार है : 1. कन्दमूलादि पदार्थों में अनंत जीव का नाश होता है। मांस मदिरादि पदार्थों में द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के असंख्य त्रस जीवों का नाश होने से अभक्ष्य हैं। 2. अभक्ष्य खान पान से आत्मा का स्वभाव कठोर और निष्ठुर बन जाता है। 3. आत्मा का अहित होता है। 4. आत्मा तामसी बनती है। 5. हिंसक वृत्ति भडकती हैं 6. अनंत जीवों को दुःख देने से असाता वेदनीयादि अशुभ कर्मों का बंध होता है। 7. धर्मविरुद्ध भोजन है। 8. जीवन स्थिरता हेतु निरर्थक है। 9. शरीर, मन और आत्मा को अस्वस्थ करता है। 10. जीवन में जडता लाता है जिससे धर्म में रुचि उत्पन्न नहीं होती है। 11. दुर्गति की आयु का बंध करता है। 12. काम क्रोध की वृद्धि करता है। 13. रसलालसा से भयंकर रोग पैदा करता है। 14. अचानक असमाधिमय मृत्यु होती है। 14. अनंतज्ञानी के वचन पर विश्वास भंग हो जाता है। इन समस्त हेतुओं को ध्यान में रखकर अनेक दोषोत्पादक अभक्ष्य पदार्थों का आजीवन त्याग सभी के लिए हितकर है। - अभक्ष्य पदार्थों में किन जीवों का नाश होता है। * गूलर के पांचों फलों में वनस्पति के अनगिनत बीजों के जीव * मधु, मदिरा, मक्खन, बोल अचार, द्विदल, चलित रस, रात्रिभोजन में असंख्य द्वीन्द्रियादि त्रस जीव । * मांस में, विष में पंचेन्द्रिय जीव, निगोद के अनंत जीव, समूर्च्छिम जीव, कृमी आदि। * बरफ, ओले में पानी के असंख्य जीव । * मिट्टी में पृथ्वीकाय के असंख्य जीव । * बहुबीज, बैंगन, तुच्छ फल में वनस्पति के जीव और त्रस जीव, एठी गुठली पर समूर्च्छिम जीव । * अनंतकाय में कंदमूल के कण कण में अनंत जीव * अज्ञात फल-फूल, वनस्पति के जीव, पंचेन्द्रिय जीव तथा त्रस जीवों का नाश है। 63

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