Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 104
________________ AAR संसार सुखमय जय वीयराय । जग गुरु । होऊ:- हो । ममः- मुझे। तुह :- आपके । पभावओ :- प्रभाव से, सामर्थ्य से भवनिर्वेद कलह भयवं :- हे भगवन् । भव - निव्वे ओ :- संसार के प्रति वैराग्य कुपण जयवीयराय लोग विरुद्धच्चाओ, जगगुरु गुरुजण पूआ परत्थकरणं च। सुहगुरु जोगो तव्वयण सेवणा आभवमखंडा ||2|| वारिज्जइ जइ वि नियाण बंधणं मार्गानुसारिता वीयराय तुह समये। तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं ||3|| दुक्ख खओ कम्म खओ, समाहि मरणं च बोहि लाभो अ। संपज्जउ मह एअंतुह नाह ! पणाम करणेणं ||4|| सर्व मंगल मांगल्यं सर्व कल्याण कारणम् मग्गाणुसारिआ :- मोक्षमार्ग में चलनेकी शक्ति प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयंति लोकविरुदत्याग शासनम् ||5|| इष्टफलसिन्दि रोगपी समाधि शुभेच्छा आजीविका समाधि देवदर्शन इट्ठफल सिद्धि:- इष्टफल की सिद्धि गुरुजनपूजा आज्ञा स्वीकार पितृसेवा रामचन्द्रजी मश्करी धर्मी की होसी शुभगुरुयोग तोग विरुद्ध च्चाओ-लोकनिंदा हो ऐसी प्रवृत्ति का त्याग, लोक निंदा हो ऐसा कोई भी कार्य करने के लिए प्रवत्तन होना। गुरुजन पूआ :- धर्माचार्य तथा मातापितादि बडे व्यक्तियों के प्रति परिपूर्ण आदर भाव। परार्थकरण सुहगुरु जोगो :- सद्गुरु का योग। कर्मक्षयं । सहर्ष सहन स्वकार गुरुवचुनसवा : धारिश धागरिक हितोपदेश या जिनसहित लए तशील परत्यकरणं :- दूसरों का भला करने की तत्परता। च:- और दुःखक्षय काम शोक कम्मखओ :- कर्म का नाश सवयण सेवणा- उनकी आज्ञानुसार चलने की शक्ति। आप - जब तक संसार में परिश्रमण करना पड़े तब तका अ - अखर रीति से। पारिया--निषेध किया है। जय दि-बपि । नियामपर्ण-निवान-बंधन, फतकी याचना बीयरा-है वीतराग । ठ- आपके । समो-शास में. प्रवचन में । बह वि-तथापि नमः।- मुझे। हन- हो। सेवा - उपवाना । मो मो :- प्रत्येक भव में तुम्हा-आपके बिसवाय - चरणों की ईया RKAधर्व दीनता, आधि-चिता बोधिलाभ ० जिनवचन श्रद्धा ज्ञान अभिमान चारित्र दुक्खखओ :- दुःख का नाश समाधि मण बोहितामो :- बोधि ताम, सम्यक्त्वकी गति | अ. और संपादक:- अयन हो। महः- मुझे। एक ऐसी परिस्थिति समाहिमरणं :- शांतिपूर्वक मरण | च :- और NAalanceduboxRRRRRRR..... | 98|

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