Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 116
________________ * भरत और बाहुबलि भगवान आदिनाथ की दो पत्नियां : सुमंगला और सुनंदा । सुमंगला और ऋषभ युगलिक रुप में साथ साथ जन्मे थे। सुनंदा के साथी युगल की ताड वृक्ष के नीचे सिर पर फल गिरने से मृत्यु हो गई थी । युगल में दो में से एक की मृत्यु हो ऐसा यह प्रथम किस्सा था। Credit Ecce wwww 60 सौधमेन्द्र इन्द्र ने ऋषभदेव के पास जाकर कहा आप सुमंगला तथा सुनंदा से ब्याह करने योग्य हो, हालांकि आप गर्भावस्था से ही वीतराग हो लेकिन मोक्षमार्ग की तरह व्यवहारमार्ग भी आपसे ही प्रकट होगा। यह सुनकर अवधिज्ञान से ऋषभदेव ने जाना कि उन्हें 83 लाख पूर्व तक भोगकर्म भोगना है। सिर हिलाकर इन्द्र को अनुमति दी और सुनंदा तथा सुमंगला से ऋषभदेव का विवाह हुआ। 4 समयानुसार ऋषभदेव को सुमंगला से भरत और ब्राह्मी नामक पुत्र पुत्री जन्मे एवं सुनंदा से बाहुबलि और सुंदरी का जन्म हुआ। उपरांत, सुमंगला से अन्य 49 जुडवे जन्मे। आदिकाल के प्रथम राजा ऋषभदेव ने संसार त्याग से पूर्व ही सारी हिस्सेदारी कर दी थी। भरत को अयोध्या विनीता नगरी का राजा बनाया। तक्षशिला का अधिपति बाहुबली को बनाया। शेष अट्ठाणुं पुत्रों को भी छोटे - छोटे राज्य दिये गये । 111 - भरत महाराजा ने अपने पिता ऋषभदेव प्रभु का केवलज्ञान महोत्सव ठाठ बाठ से मनाया। - समवसरण में प्रभु की देशना सुनकर भरत के 500 पुत्र और 700 पौत्र बोध को प्राप्त हुए और दीक्षा ग्रहण की। इनमें से पुण्डरीक कुमार प्रथम गणधर हुआ। अब राजमहल आकर भरत महाराजा ने अपने आयुद्धशाला में उत्पन्न हुए चक्ररत्न की पूजा के लिए अट्ठाई महोत्सव करके चक्ररत्न का आराधन किया । चक्रवर्ती का पद प्राप्त करने, छः खण्डों को साधने में भरत महाराजा को 60 हजार वर्ष लगे। राजन् आप षटखण्ड के अधिपति बन चुके हैं। सभी राजाओं ने आपकी अधीनता स्वीकार कर ली है। समस्त राजमुकुट आपश्री के चरणों में नतमस्तक हैं पर आपके अट्ठाणुं छोटे भाई एवं अनुज भ्राता बाहुबली अभी भी अपना स्वतंत्र राज्य लिये बैठे हैं। वे जब तक आपके आज्ञानुसारी नहीं बनते हैं तब तक यह विजय यात्रा अधूरी है। आप उनको संदेश प्रेषित कीजिए कि संपूर्ण विश्व को एक निश्रा एवं एक संरक्षण मिले। सभी काही संरक्षक हो, इस अपेक्षा से आप सभी मेरे अनुगामी बने । मेरी अधीनता स्वीकार करें। सभी संतुष्ट और तृप्ति के भाव से अपना जीवन जी रहे थे। राज्य विस्तार की लिप्सा किसी के मन में

Loading...

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146