Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 86
________________ 1. गूढ माया :- कपट को कपट के द्वारा छिपाना, बाहर से मित्रता सहयोग - सद्भाव दिखाना और भीतर से कषाय, वैरभाव और आक्रोश रखना । मुख से राम, बगल में छूरी कहावत की भांति धूर्तता या ठगी करने से भी तिर्यंचायुष्य का बंध होता है। 2. सशल्य (माया करना) : कपट और शल्य युक्त होना, महाव्रत - नियम भंग होने पर आलोचना नहीं करनेवाला, किसी अन्य के नाम से आलोचना लेकर शल्य सहित आलोचना करने वाला तिर्यंच आयुष्य का बंध करता है। लक्ष्मणा साध्वी ने सशल्य आलोचना ग्रहण करके भारी संसार का उपार्जन किया था। 3. असत्य भाषण : • सत्य आत्मा का स्वभाव है और झूठ बोलना एक असहज तनाव है। क्रोध, लोभ, भय और स्वार्थ मनुष्यायु | कर्मबंध के चार कारण : - के कारण मनुष्य असत्य भाषण करता है और तिर्यंचायु का बंध कर लेता है। असत्य भाषण का परिणाम पशु जीवन की प्राप्ति के रुप में मिलता है किंतु झूठ बोलते समय अनेक दोषों की और कुसंस्कारों की जो पुष्टि होती है वह महाघातक है। 4. झूठा तोल - माप करना :- • खरीदने के तोल माप और बेचने के तोल भिन्न रखना। व्यावहारिक जगत् माप भिन्न में छल कपट करना विश्वासघात है। परंतु धार्मिक जगत् में छल-कपट महाघातक हैं जो लोग धर्मके नाम पर पाखण्ड फैलाते हैं, दम्भ - - दिखावा करते हैं भोल लोगों को ठगते हैं उसके कटु परिणाम इस जन्म में नहीं, अगले जन्म में भी भोगने पडते हैं । इसी बात को सूत्रकृतांग सूत्र में स्पष्ट कहा है “जो • माया पूर्वक आचरण करता है वह अनंत बार जन्म मरण करता है। - -- * मनुष्यायुष्य जिस कर्म के उदय से मनुष्य गति में जन्म हो अथवा जिस कर्म के उदय से आत्मा को अमुक समय तक मनुष्यभव में रहना पडे उसे मनुष्यायुष्य कर्म कहते हैं। चार कारणों से आत्मा मनुष्यायु कर्म का बंध करती हैं । जैसे 1. सरलता 2. विनम्रता 3. दयालुता (ईर्ष्या रहित होने से ) 4. अमत्सरता - - - 1. सरलता : मन वचन काया की एकरुपता को सरलता कहते हैं। जहां हृदय की सरलता हो वहां धर्म के बीजों का वपन होता है। इसी कारण प्रकृति की भद्रता को मनुष्यायु बंध का कारण कहा है। 81

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